शुक्रवार, मार्च 12, 2010

थोड़ी राइट, थोड़ी रॉन्ग

फिल्म समीक्षा

मुक्ता आर्ट्स की ओर से रिलीज निर्देशक नीरज पाठक की फिल्म राइट या रॉन्ग एक थ्रिलर है। एक ऐसा थ्रिलर है जिसकी शुरुआत धीमी है लेकिन धीरे धीरे कहानी खुलने लगती है। यह दो पुलिस अफसर दोस्तों की कहानी है जो अपने ढंग से एक सच और झूठ के साथ जी रहे हैं। एक दोस्त एनकाउंटर में हादसे का शिकार होता है और अपाहिज हो जाता है। अपने अच्छे दिनों को याद करते हुए वह अवसाद का शिकार है और अपनी ही बीवी और भाई को कहता है कि वे उसका मर्डर कर दें। कहानी यहां से करवट लेती है। कुछ चीजें बिलकुल ही खोलकर बता ही गई हैं जैसे पुलिस अफसर की बीवी का उसके भाई के साथ अफेयर है। बाद में थ्रिलर इस बात पर जाकर टिक जाता है कि वह मर्डर था कि हादसा। लेकिन इससे पहले दर्शक सब कुछ जान जाते हैं कि वह सचमुच क्या था। जो अभियुक्त है, वो किस तरह खुद को बचा रहा है।
फिल्म में सन्नी देओल और इरफान खान लीड रोल में हैं तो ईशा कोप्पिकर और कोंकणा सेन भी हैं। कहानी इतनी ज्यादा थ्रिलिंग नहीं है कि आप पहले से अंदाजा ना लगा सकते हों। इस लिहाज से यह एक औसत फिल्म है। एक्शन दृश्य अच्छे हैं। कहानी कहने की पुरानी अदा, जैसे कोर्ट में गवाही, वकीलों की जिरह जैसे पुराने पड़ चुके दृश्यों को नया रंग देने की कोशिश की गई है। गीत संगीत औसत हैं और गैर जरूरी भी लगते हैं। ईशा कोप्पिकर पर फिल्माए गए बैडरूम दृश्य कुछ ज्यादा ही बोल्ड हैं और अनावश्यक लंबे किए गए हैं, जाहिर है, फिल्म को उत्तेजक दृश्यों के सहारे नहीं बेचा जा सकता। टाइमपास के लिए ठीक ठाक फिल्म है।

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