शनिवार, अक्तूबर 11, 2008

यह पतन का सूत्रपात है

यदि आप इंसान हैं और सरेराह चलते हुए कोई भिखारी आपसे कहे, भाई साहब एक रुपए का सिक्का दे दीजिए। आप देंगे। वह आपसे कहे, उसका बच्चा बीमार है, एक हजार रुपए उधार दीजिए तो आप बिदक जाएंगे और आपसे यदि वह यह कह दे कि अपना जमीर मुझे दे दीजिए, तो आप उसे एक थप्पड़ मार देेंगे या समझेंगे ये किसी पागल का प्रलाप है। आप चाय पीते हुए अखबार पढ़ रहे हैं या शाम को टीवी पर खबरों या सीरियल के बीच यह तो बड़ा टोइंग है, पर मुस्कराते हैं और चुपचाप बाजार में उपलब्ध दूसरे सस्ते उत्पादों के बावजूद चुपके से उसी खास ब्रांड की अंडरवियर खरीद लाते हैं। कमोबेश महंगी कीमत पर आप वो तेल खरीद लाते हैं, जिसके बारे में आपको यह बताया जाता है कि उसमें कोलेस्ट्रोल कम है। क्योंंकि आपको जिंदगी को टेक इट ईजी वाले सिद्धांत पर लानी है, यह सिद्धांत आपके बाप दादाओं का नहीं था। उन्हें मेहनत करनी होती थी। ज्यादा मेहनत पर कम पैसा मिलता था। अब कई मामलों एक आइडिया ही आपकी जिंदगी बदल देता है। सबीर भाटिया हॉटमेल से कमा खाते हैं। अभिषेक बच्चन मोबाइल फोन से पूरा स्कूल चला सकते हैं, अपनी पत्नी को प्रताडि़त करने के दो आरोपी, एक गैंगस्टर के साथ फरार हुई बी ग्रेड अभिनेत्री, कामयाबी के लिए संघर्षरत गायक, लगभग खत्म हो चुके करियर वाली आठ बरस पुरानी एक मिस वल्र्ड, अंग प्रदर्शन के लिए बदनाम आयटम गर्ल और एक फूहड़ मंचीय कॉमेडियन समेत पता नहीं कितने चंगू मंगू मिलकर इन दिनों आपका समय चुरा रहे हैं, जमीर चुरा रहे हैं और आपको भ्रम है कि आपका मनोरंजन हो रहा है। बिग बॉस नाम का या इस जैसे लगभग सारे ही रियलिटी शो हमारे सामाजिक मनोरंजन का हिस्सा नहीं रहा। बाजार ने हमारी जमीर पर इस तरह कब्जा किया है कि बाहर हम एक रावण जलाते हैं और घर के भीतर हर कोने में बाजार अपने पूरे दम खम रावण बनकर बैठा है। हमारी सारी नैतिकताएं ताक पर हैं। हम आधुनिक होने के लालच में यह भूल गए है कि एक थर्ड ग्रेड अभिनेत्री और एक मरहूम राजनेता का नशेड़ी और पत्नी को प्रताडि़त करने वाला बिगड़ैल रईसजादा हमारे बेड टाइम मनोरंजन के मुख्य किरदार हैं। उनके फूहड़ संवाद, कहानी में ट्विस्ट लाने के लिहाज से तय की जाने वाली खोखली सी दिनचर्या, शो को अधिक से अधिक बेचने के लिए खास बाजारू ढँग से की गई एडिटिंग। हम उनके मुख्य खरीददार हैं। दरअसल यह पश्चिम के अघाए, पेटू और निखट्टू लोगों के शगल हैं, जो उपभोक्तावाद के चरम पर पहुंचे चुके हैं। जिनके पास करने को कुछ नहीं है और वे सिर्फ पतनोन्मुख हैं। इसलिए रेव पार्टियां हैं, समलैंगिक संबंधों की वकालत है। अपने निजी जीवन में निहायत ही फूहड़, अधकचरे ज्ञान वाले और फ्लॉप दर्जनभर चेहरे बिना किसी विषय के, बिना किसी संवदेना के, बिना किसी मकसद के लिए नब्बे दिन तक एक घर में बैठे हैं। वे तीन महीने के लिए ऐसी जगह रहने को राजी हुए, यही सबूत है कि उनके पास कोई काम नहीं था। उनके जीवन से, उनके संवादोंं से किसी का कोई मनारंजन कैसे हो सकता है लेकिन लोग कह रहे हैं यह अद्भुत मनोरंजन है। क्या आप अपने बच्चों से यह अपेक्षा करते हैं कि वे इस किस्म के रिलेशनशिप और भाषाई माहौल में रहें तो हम उनके साथ बैठकर इस सीरियल का आनंद कैसे उठा सकते हैं? बाजार का बिग बॉस तो यही चाहता है कि आप बिना कुछ सोचे समझे यह मानते रहे कि आपका मनोरंजन हो रहा है। बिग बॉस अपनी झोली में मुनाफा समेट रहा है। आप भिखारी को अपना पैसा अपना वक्त देने में तौहीन समझते हैं लेकिन बाजार एक सभ्य भिखारी है, वह आपका जमीर भी आपसे छीन लेता है और कुछ नहीं करते। यदि टेक इट ईजी के सिद्धांत में कोई जादू की झप्पी होती तो इसके ठेकेदार अमेरिकी समाज की आर्थिक दुर्गति न हो रही होती जिससे आज पूरी दुनिया हिली हुई है। बाजार अपने चरम पर पतन लेकर आता है और बिग बॉस जैसे रियलिटी शो उसी सिलसिले में हमें अच्छे लग रहे हैं। आर्थिक, सामाजिक और नैतिक विकास के संक्रमण वाले इस दौर में ऐसे कार्यक्रमों की भारतीय समाज में लोकप्रियता पूंजीवाद के उत्थान के बाद पतन की सहज नियति से भी अधिक तेजी से हमें पतन की ओर ले जा रहे हैं लिहाजा यह हमारे दिमागी पतन का सूत्रपात है, हम भले ही इसे व्यक्तिगत आजादी और मनोरंजन जगत में का नया सूत्रपात कहते रहें।