शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

'वीर: फॉर्मूलों का बड़ा हादसा


साल का पहला महीना बीत रहा है और इंडस्ट्री के लिए एक और बुरी खबर है। निर्देशक अनिल शर्मा की 'वीर भी उसी रास्ते पर भटक गई, जहां बॉलीवुड फिल्में अक्सर भटक जाती हैं। भव्यता के बावजूद लचर कहानी ने 'वीर का बलिदान कर दिया है। गदर में पाकिस्तान को गाली दी गई थी इसलिए एक खराब और लाउड फिल्म होने के बावजूद वह चल गई थी, यहां तो अंग्रेजों को गालियां हैं और वह भी काल्पनिक तरीके से। कहानी में इतिहास मेहमान की तरह आता है, जहां से सिर्फ पिंडारी, माधवगढ़, ब्रिटिश शासन, युवराज, वचन, बदला जैसे शब्द लिए गए हैं। एक प्रेम कहानी बनाई गई है, जिसमें दुश्मन माधवगढ़ की राजकुमारी से पिंडारी सरदार के पुत्र को प्यार हो जाता है। प्यार लंदन में होता है और उसका अंत माधवगढ़ में। एक ट्रेजिक लव स्टोरी है लेकिन उसमें संवेदना ही नहीं है। पूरी फिल्म में नायक और उसका भाई कभी मजाकिया होते हैं तो कभी वे बलवान हो जाते हैं। स्वयंवर जैसे पिटे हुए फार्मूले और उसमें भी पहलवान से लड़ाई में जीतने वाले को राजकुमारी का मिल जाना। हे भगवान, थ्री इडियट देखने के बाद तो हमारे दर्शकों को समझ में आ ही गया होगा कि अच्छी कहानी बिना स्टार के भी चलेगी और खराब कहानी वाली फिल्म में सलमान खान भी कुछ नहीं कर सकते। सलमान के प्रशंसक भी शायद इस फिल्म से निराश हों।
दरअसल इस प्रेम कहानी में यह बहुत ही नाटकीय लगता है कि जंगल में लूटपाट करने वाला पिंडारी रेल में एक राजकुमारी को देखता है। वही अचानक लंदन पढऩे भी चला जाता है, जिसे लॉर्ड मैकाले की नई शिक्षा नीति की मेहरबानी बताया गया है। अगले ही क्षण वह लंदन में है, लंदन में उतरते ही उसे वही राजकुमारी मिल गई जिससे उसको प्यार हुआ था। काश, दुनिया की हर कहानी इतनी ही खूबसूरत होती जितनी इस फिल्म की कहानी बेतरतीब उड़ती तमन्ना।
फिल्म खुलती है तो एक भव्यता लिए हुए हैं। घोड़ों की रोमांचक कर देने वाली दौड़, पिंडारियों की दहाड़ अच्छी लगती है लेकिन यह सब टुकड़ों में है। फिल्म को फायदा इसी बात का है कि इसमें सलमान खान हैं। वरना जरीन खान की सिर्फ शक्ल ही कैटरीना से मिलती है, उसके चेहरे पर तो भाव पूरी फिल्म में एक से ही हैं। वीर की थोड़ी बहुत इज्जत भव्यता ने भी बचाई है। गोपाल शाह की सिनेमाटोग्राफी बेहतरीन है। मोंटी का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है, टीनू वर्मा के एक्शन कुछ नए हैं और कुछ पुराने जमाने की यादें ताजा कराते हैं। यानी फिल्म में कुछ भी इतना खराब नहीं है जितनी खराब कहानी है। गीत ठीक ठाक है और वे उतने लोकप्रिय नहीं हो पाए जो कि गुलजार के सामान्य गीत भी हो जाते हैं। संगीत भी औसत ही है। हां, सिंगल स्क्रीन सिनेमा में फिल्म को शायद ठीक कलेक्शन मिलें।

1 टिप्पणी:

facebookeeda ने कहा…

bechaara veer bechaara salman,kya yeh wohi judwaa ka salman hai,zid pakadke baitha tha ki main picture likhoonga...natija uske saamne hai,chandramukhi sridevi ke saath bhi kuch yun hi piti thi,
par wanted aur apkgk ke ek scene mein toh sahi tha.ab cardboard dabba lagta hai veer mein.Salman ke veer fans ki bhi himmat nahi ho rahi theatre jaaney ki.Aaapkey is aanandmayi movie vishleshan ka tahe dil se shukriya.Aapkey baaki articles bhi kaafi mazakiyaan hain.Dhanyavad!