सोमवार, मार्च 29, 2010

सरकारी जादू की झप्पी


आप नरेगा के बारे में कितना जानते हैं? जो खबरें छप रही हैं उतना ही उससे ज्यादा कुछ। जिस इलाके में मैं घूमकर मैं आया हूं, वहां जमीनी हकीकत कुछ और है। दरअसल सरपंच समेत गांव के आम लोगों ने यह समझ लिया है कि नरेगा या महानरेगा का पैसा सरकार बांट रही है लिहाजा जरूरी नहीं कि इस पैसे के बदले काम किया जाए। सरकारी नियमों के मुताबिक एक तयशुदा काम होना चाहिए। कुछ समय पहले सवाई माधोपुर जिले के गांवों में मैं नरेगा कार्यों की जांच करने गए एक इंजीनियर मित्र के साथ था। वहां हमने देखा कि मस्टर रोल संबंधी औपचारिकताएं पूरी हैं लेकिन मिट्टी की खुदाई वाले स्थान पर जेसीबी मशीन के दांतों के निशान थे। जब जांच में उन्होंने आपत्ति जताई तो सरपंच ने कहा, आपको क्या तकलीफ है, जब लोगों को पैसा मिल रहा है। लोगों को दिक्कत ही नहीं है कि उन्हें काम किए बिना ही पैसा मिल रहा है। भले ही इसमें सरपंच और सरकारी अफसरों ने अपना कमीशन काट लिया है। सरकार का काम तो हो ही रहा है। फिर वो चाहे आदमी खुदाई करे या मशीन बात तो एक ही है। सच्चाई यह है कि मशीन की खुदाई वाले काम में मजदूर और सरकारी कारिंदों के बीच सौदेबाजी की सदैव आशंका है।दूसरी बात यह है कि नरेगा के दौरान कराए जा रहे कार्यों में बहुत सारे इतने अप्रासंगिक और गैर-जरूरी हैं। मसलन किसी भी जोहड़ में मिट्टी खोदना। गांव के सामूहिक चरागाह के चारों ओर खाई देने का तुक समझ में नहीं आता। खासकर राजस्थान के उस मरूस्थलीय हिस्से में, जहां हर मई जून में चलने वाली आंधियों से उस खाई में फिर मिट्टी भर जाती है। सवाल है कि ऐसे काम क्यों हो रहे हैं, जवाब वही है कि सरकारी आदमियों को ऐसे ही कामों में पैसा डकारने की छूट मिलती है। वे कह सकते हैं कि खुदाई तो करवा दी थी लेकिन आंधियों ने सब खराब कर दिया। एक गांव में मैं गया, वहां गांव के भीतर ही पूरा मार्ग ऐसा है कि आपकी कार या बाइक को चलने में तकलीफ होती है। मैंने पूछा, यहां नरेगा के कोटे से आप लोगों ने पत्थर या सीमेंट की सडक़ क्यों नहीं बनाई? खुलासा हुआ कि इस मोहल्ले के लोगों ने उस आदमी को वोट नहीं दिया, जो इस बार सरपंच जीत गया। पिछली बार भी यह हादसा इसी मोहल्ले के साथ हुआ। सत्ता के साथ नहीं रहने की अपनी तकलीफें हैं। सरपंच अपनी पूरी दादागिरी कर रहा है। खुद मेरे गांव में मुझे यह जानकर ताज्जुब हुआ कि गांव के इतिहास में पहली बार सात आदमी सरपंच के लिए मैदान में थे। वरना समझा बुझाकर दो और तीन आदमी ही मैदान में रह जाया करते थे। इस बार सरकारी धन का लालच चरम पर था। अघोषित तौर पर लोगों ने माना कि कोई 25 से 30 लाख रुपए का खर्च सरपंच के चुनावों में हो गया है। इसमें बड़ी रकम शराब पर खर्च की गई। आदरणीय चाचाओं ने मुझे गर्व के साथ बताया कि पिछले तीन महीने कितने हसीन गुजरे हैं, जब मैखाने की धार गांव से गुजर रही थी और मनचाहे ढंग से लोग उसमें डुबकी लगाकर पुण्य कमा रहे थे। नरेगा के बाद गांव में मजदूर अब खेतों में अपनी नियमित मजदूरी नहीं करना चाहते। खतरनाक ढंग से सरकारी पैसे ने उनकी श्रम करने की नीयत तेजी से बदली है। वे अब बिना काम किए सब कुछ चाहते हैं। वे खेतों में मजदूरी नहीं करना चाहते क्योंकि वहां पैसा देने वाला सीमांत किसान है और वह अपने पैसे की पूरी वसूली चाहता है। सरपंच या सरकारी अफसरों की तरह उसके खेत में कमीशन खोरी नहीं चल सकती। मैं नरेगा की आलोचना करते हुए गैर सरकारी संगठनों के उस अभियान को भी हवा नहीं देना चाहता जिनकी तकलीफ है कि सरकार सीधे गांवों में पैसा क्यों बांट रही है? इतनी बड़ी रकम में उनको भी मलाई मिलनी चाहिए। पैसा बांटने का मौजूदा सरकारी ढांचा ही ठीक है। मैंने नॉर्थ ईस्ट के अराजकताग्रस्त राज्य मणिपुर में भी नरेगा का काम देखा। वहां काम कर रहे मजूदरों से बातचीत की। सचमुच नरेगा ने गांवों के आम लोगों की जिंदगियों को बदल दिया है। उनके पास पैसा पहुंच रहा है। जरूरत इस बात की है कि इस पैसे पर नजर रहे। सरकार की, हम सबकी। उसे बांटने के ढंग पर सरकार सोचे। देश की तकदीर तेजी से बदल सकती है। लेकिन मुझे सबसे बड़ा खतरा यह दिख रहा है कि गांवों में तेजी से जा रही यह पूंजी उन लोगों की श्रम करने के जुनून, अपने हक के लिए जूझने की आदत, क्रांतिचेतना को कुंद कर रही है। सरपंच और सरकारी तंत्र मिलकर पूरी कोशिश में है कि आदमी बिना काम किए पैसा लेने की आदत बनाए ताकि उनका फायदा हो। यह आम आदमी को अपनी ही नजरों में गिराने की एक साजिश जैसा है। क्योंकि भूखे आदमी को पहले भरपेट रोटी चाहिए। उसके बाद वह सच झूठ, नैतिक अनैतिक चीजों के बारे में सोचता है। मुझे डर है कि आने वाले दस साल में गांव वालों के पास पैसा बहुत आने वाला है लेकिन वे गांव वाले नहीं बचेंगे। छल कपट, बेईमानी और भ्रष्टाचार उनकी नसों में दौड़ेगा। मैं दुआ करता हूं, ऐसा नहीं होगा। लोग अपने श्रम की अहमियत समझेंगे। नरेगा जैसी सरकारी जादू की झप्पी को शायद वे ठीक से महसूस कर पाएंगे।

3 टिप्‍पणियां:

Fauziya Reyaz ने कहा…

jo dikhta hai wo hota nahi..aur jo hota hai wo dikhta nahi...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

1-2-4 तो पहले से ही लागू था. एक काम करेगा दो का पैसा ले जायेगा निकाला चार का जायेगा... किसी की तो गरीबी दूर होगी :)

काशीराम चौधरी ने कहा…

sir apne gaon ki sahi sthiti bayan ki hai, vastav me ab waha bhrishtachar shahar se bhi jyada hota ja raha hai. Aur gaon me 85 percent youth wine peene lage hain, isse crime ka graph bhi badhega. Ye sab chintajanak hai.