गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

सलाम सचिन



जीत हार के गुणा भाग लगाने वाले अंकशास्त्री भी मान ही गए होंगे कि जब एक जुनूनी खिलाड़ी इतिहास बनाने के लिए जूझ रहा होता है तो वह अंकों और ज्योतिष का मोहताज नहीं रहता। सृष्टि के सारे अंक ही ये कोशिश करते हैं कि सचिन के साथ हो लेने में शायद उनकी भी इज्जत बढ़ जाए। सारे ग्रह एकमुश्त सचिन के साथ चलने की गुहार कर रहे थे। पचासवें ओवर की तीसरी बॉल दुनिया में वन डे क्रिकेट के इतिहास की सबसे भाग्यशाली बॉल थी। लैंगवैट वो बॉलर है जो याद रखेगा कि उसकी बॉल को सचिन तेंदुलकर के बल्ले ने छुआ था।

तीन दिन पहले निर्णय में पल भर की देरी ने उन्हें चार रन पर आउट किया था। यह एक चीते की वापसी थी।
जब मैच का 48वां ओवर था तो एक छोर पर टिके कप्तान धोनी चौके छक्के बरसा रहे थे। यह पहली बार था कि भारतीय दर्शक उसे कोस रहे थे। दूसरे छोर पर खड़े सचिन 47 वां ओवर खत्म होने तक198 रन के साथ सईद अनवर का वन डे में 194 रन बनाने का तेरह साल पुराना रिकॉर्ड ध्वस्त कर चुके थे । लोग बेसब्र थे। धोनी से टैलीपैथी आग्रह था कि स्ट्राइक छोड़ें, सचिन को दें। 48वां ओवर । पहली बॉल पर कोई रन नहीं। दूसरी बॉल, एक रन। तीसरी बॉल। सामने सचिन। कोई रन नहीं। चौथी बॉल। दौड़कर एक रन पूरा किया। दूसरा रन धोनी नहीं चाहते। सही भी है। पांचवी बॉल। धोनी का कोई रन नहीं। ओह नो। स्ट्राइक सचिन को दो।

ओवर की आखिरी बॉल। एक रन। ओह नो। क्यों लिया। स्ट्राइक सचिन को दो। ओवर बदला। धोनी फिर सामने। 49वां ओवर। पहली बॉल खाली। दूसरी बॉल, धोनी का छक्का। तीसरी बॉल, फिर खाली। चौथी बॉल, चौका। धोनी चाहते क्या हैं? हे धोनी, सचिन को खेलने दो। पांचवी बॉल, धोनी का फिर छक्का। क्या खेल है? छक्कों पर दर्शकों को मजा नहीं। यह एक रन बनाकर हट क्यों नहीं रहा। सचिन को खेलने दो। ओवर की आखिरी बॉल, अब एक रन ले लिया। धोनीजी ऐसा क्यों कर रहे हो?


आखिरी ओवर करोड़ों सांसे थमी हैं। स्ट्राइक पर फिर धोनी है। यह तो चिपक ही गए हैं। छोड़ो जगह। सचिन को आने दो। पहली बॉल, धोनी का छक्का। यह सचिन को दो सौ पूरे नहीं करने देगा। दूसरी बॉल। धोनी रन के लिए दौड़े। एक पूरा। दूसरे के लिए मुड़े। अमला फील्डिंग में चूके। ले सकते थे। सचिन धोनी की आंखे मिली। तय हुआ, अब मेरी बारी। दर्शकों ने तालियां बजाई कि धोनी दूसरा रन नहीं ले सके। कप्तान के रन बनाने से दर्शकों को शायद पहली बार तकलीफ हो रही थी। पारी की आखिरी चार बॉल फेंकी जानी है। बॉल के सामने सचिन है। एक रन लिया और दो सौ पूरे। वन डे इतिहास की किस्मतवाली बॉल। आखिरी तीन बॉल में भी धोनी दो चौके लगा ही आए यानी यह सब सचिन से स्पर्धा नहीं थी। खेल में डूबने की यह एक कप्तान की भी अदा थी।

ग्वालियर के स्टेडियम में जादुई कलाइयां कमाल कर रही थीं। जब सहवाग जब नौ रन के निजी स्कोर पर आउट हुए तो सचिन पर एक जिम्मा था कि पारी संभाली जाए। शुुरुआती खेल से ही सचिन लय में थे और यह यादगार पारी थी। अब तक सचिन अपनी पारियों में क्रिकेट के प्रतिबद्ध कवि की तरह दोहे, लघु कविताएं, खंड काव्यों का सर्जन करते आए। इस पारी में उन सबको मिलाते हुए उन्होंने एक महाकाव्य रच दिया। दुनिया के खिलाडिय़ों के सामने एक चुनौती के साथ कि आओ, खेलो और जुनून है तो इससे बेहतर सर्जन करके दिखाओ। जियो सचिन।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सचिन का जबाब नहीं.