शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2010

हम होंगे कामयाब एक दिन


करण जौहर अपनी प्रेम मुहब्बत, रोने धोने वाले फार्मूले से मुक्ति की छटपटाहट से बाहर आने की कोशिश कर रहे है। उन्हें हमारे हौसले की जरूरत है। माय नेम इज खान के जरिए वे यह बताना चाह रहे हैं कि दुनिया मे सिर्फ दो ही किस्म के इंसान होते हैं, अच्छे और बुरे। यहां नायक सेलफोन भी इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि उसके सिगनल से मधुमक्खियों को दिक्कत होती है। तीसरी बात यह कि वह अमेरिका के राष्ट्रपति से मिलना चाहता है। यह कहना चाहता है कि माइ नेम इज खान एंड आय एम नॉट अ टेरेरिस्ट। अमूमन लोग उम्मीद कर रहे हैं कि फिल्म की तुलना आमिर सलमान अक्षय कुमार के अनुपात में हो तो यह निहायत ही गलत तरीका है। यह फिल्म थ्री इडियट नहीं है। यह फिल्म हमारे भीतर छुपे शैतान को पत्थर मारने में हमारी मदद करती है जहां बाल ठाकरे या बजरंग दलियों ने यह मान लिया है कि खान सरनेम का अर्थ ही धोखेबाज और आतंकवादी होना है। यह एसपर्जर सिंड्रोम से पीडित रिजवान खान की कहानी है, जिसे नई जगह, पीले रंग और तेज शोर से डर लगता है लेकिन वह बहुत ही समझदार और ज्ञानी भी है। धुन का पक्का है। मानवीय नजरिया उसे उसकी मां, उसके टीचर वाडिया और इस्लाम से उसे विरासत में मिला है। वह अमेरिका में एक लड़की मंदिरा के सैलून मे अपने ब्यूटी प्रोडक्ट बेचने जाता है और उसी से प्यार कर बैठता है। मंदिरा तलाकशुदा है और उसके पहले से एक बच्चा है। शादी के बाद उसका सरनेम मंदिरा खान और उसके बेटे का नाम समीर खान हो जाता है। 9/11 से पहले सब कुछ ठीक था लेकिन उसके बाद पूरी दुनिया ने करवट ली खान सरनेम की वजह से एक हादसा होता है। दोनों पति पत्नी अलग हो जाते हैं। मंदिरा उसे चुनौती देती है कि किस किस के सामने वह बेगुनाही का सबूत देगा कि तुम्हारा नाम खान है और तुम टेरेरिस्ट नहीं हो। यहां से खान अमेरिका के प्रेसीडेंट से मिलने की यात्रा शुरू करता है। जहां जहां राष्ट्रपति को जाना होता है, वहां वह पहुंचता है, लेकिन मिल नहीं पाता। फिल्म इसी यात्रा को आगे बढाती है और अंजाम तक पहुंचती है। इस यात्रा में रिजवान खान एक नायक बनकर उभरता है। जॉर्जिया में छोटे से गांव के लोगों को बचाने में रिजवान खान अकेला जुटा तो उसके पीछे सैकड़ों लोग राहत सामग्री लेकर आए हैं। जहां वह काउंटर पर कमरे की सिर्फ जानकारी लेने गया था वहां भी होटल मालिक ने बोर्ड टांग लिया है कि यहां खान ठहरा था।


कहानी में बीच में कहीं ठहराव और एकरसता आती है लेकिन सारे नंबर शाहरूख खान को इसलिए जाते हैं कि वह अभिनय के एक नए अवतार में सामने है। क क किरण से, राज और राहुल को पछाड़ते हुए आप आने वाले समय में रिजवान को याद रखेंगे। काजोल तो उम्दा है ही। एक मुद्दत बाद हम होंगे कामयाब अपनी पूरी ताकत के साथ सिनेमा में आया है।करण जौहर वैसे भी अपने सिनेमा में खूबसूरत लोेकेशन्स की सैर कराते हैं। यहां भी उनके डीओपी रवि के. चंद्रन कैमरे से कविता लिख रहे हैं। सैन फ्रांसिस्को की एक ऎसी जगह दिखाते हैं कि सिनेमाघर में उस खूबसूरती पर तालियां बजती हैं। माइ नेम इज खान की तारीफ इसलिए करना और भी मौजूं है कि हमारी राजनीति और आदमी की लिप्साओं ने जो भेदभाव का जो अमानवीय चेहरा हमारे सामने बना लिया है उसे चुनौती दी जा सके। गीत तेरे नैना और सजदा पहले से काफी लोकप्रिय हो चुके हैं।

1 टिप्पणी:

काशीराम चौधरी ने कहा…

very well said sir.
aapki ek line padhana start karta hu to pata hi nahi chalta ki itni jaldi aricle pura ho gaya. sir please regular update kar diya karen.