सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

प्रेम कि नैया है राम के भरोसे

तपती धूप के बाद हवाओं के साथ तैरते बादल पहाड़ पर टिक जाते हैं। आंखें अभिभूत होती हैं। टिप टिप सी बूंदें बदन को छूती हैं। रोम रोम में सिहरन होती है। बादलों की गरज से कानों में संगीत बजने लगता है। बूंदें तेज होती हैं तो जीभ अनायास बाहर निकलती है। एक बूंद उस पर गिरती है। शुक्रिया कायनात का कि उसमें नमक पूरा है। तड़ातड़ बूंदें मिट्टी पर हैं। वहां खुशबू की फसल उगती हैं। चारों ओर मिट्टी में फैली गंध नाक से घुसकर पूरे जिस्म में घुलती है। सुख देती है, जिसके बखान के लिए शब्द बने ही नहीं हैं। शायद इसी महक से अभिभूत मैं बचपन में मिट्टी खाना सीख गया था। वरना आज उसे चखते हुए ही सोचता हूं कि किसी बच्चे को इतनी फीकी और बेस्वाद चीज खाने में क्या मजा आता होगा? मौसम की पहली बरसात पर हमारी पांचों इंद्रियां बौराई हुई एक अनिर्वचनीय सुख महसूस करती हैं। प्रेम जिंदगी में ऐसे ही आता है। जैसे पहली बारिश आती है।
मुझे लगभग ऐसा ही अहसास होने का था, दो पुलिसवालों ने हमें अपने पास बुला लिया था। वे नाम पता पूछने में जुटे थे। हमारे घरवालों को फोन करने की धमकी देने लगे थे। पुलिसवालों ने पर्स भी निकलवाया। तब उसने हिम्मत दिखाई थी कि हम सिर्फ टहलने आए थे। तुम मेरे बाप को क्या फोन करोगे? तुम्हारा भी तो कोई बाप होगा, मैं उससे जाकर मिलती हूं। उसकी हिम्मत से मुझमें भी हिम्मत थी। मैं उसे दिल की कह नहीं पाया था। आज भी वह दोस्त जरूर है, लेकिन जब उस दिन की बात याद करते हैं तो हंसी थमती नहीं। मन में घुसा हुआ डर निकलता नहीं। मैं उन प्रेमियों को सलाम करता हूं, जिनके मन से यह डर निकल गया। उन्हें देखकर ही मेरा अधूरापन पूरा होता है।
पुलिस और परिजनों ने यह मान लिया है कि बच्चे जवान हो गए तो तय है कि बिगड़ गए हैं। सांस्कृतिक ठेकेदार प्रेमियों को सरेआम पीटकर यह स्थापित करते हैं कि उनके इस धरती पर पैदा होने में प्रेम तत्व की ही कमी रह गई थी। क्या आपने कभी किसी प्रेमी को डकैती के आरोप में पकड़ा है? क्या किसी प्रेमी ने बैंक लूटा है? हां, प्रेमियों के हत्या करने की खबरें यदा कदा आती हैं। क्या वे सचमुच प्रेमी होते हैं? बारिश का फायदा उठाकर वे एक लहलहाती फसल के बीच में उगी खरपतवार हैं। एक ही वक्त में कई साथियों के साथ प्रेम में डूबने की आजादी चाहने वाले लम्पट होते हैं। उन्हें प्रेमियों की दुनिया से बाहर धकेलिए। प्रेम हमारे यहां स्वीकार्य नहीं। कोई उसे कोई संरक्षण नहीं है। उनकी नैया राम के भरोसे है। यहीं क्यों? दुनिया के कई समाजों में प्रेमियों पर बंधन के किस्से यहां करने का क्या औचित्य? सिनेमा के पर्दे पर हम चाहते हैं कि दो हंसों का जोड़ा मिल जाए तो ही कहानी पूरी होती है। असल जिंदगी में हमारे ही घर में ऐसा हो तो उस जोड़े को अलग करने में हम सारा श्रम और दिमाग लगा देते हैं। अच्छी बात है कि हरियाणा पुलिस ने थानों में ऐसे आवास बनाने की पहल की है, जहां घर से भागकर शादी करने वाले लोगों को सुरक्षा और आवास दोनों मिलेगा।
सच तो यह है कि हमें जश्न मनाना चाहिए कि किसी को प्रेम हुआ है। किसी ने यह अहसास किया है, जैसे पहाड़ से टपकती बारिश की बूंदें हमारी इंद्रियों को झंकृत करती हैं। जैसे स्टेशन पर आती हुई रेल अच्छी लगती है। जैसे दूर मरूस्थल में टीले पर उगे रोहिड़े के सुर्ख फूल अच्छे लगते हैं? कोई पूछे ये सब क्यों अच्छा लगता है तो इसका एक ही जवाब है, 'मुझे प्रेम हो गया है।Ó फूल पर बैठी तितली को देखते हुए, पहाड़ पर संतुलन बनाकर चरती हुई बकरी को देखते हुए, आसमान में स्वच्छंद उड़ रही चिडिय़ा को देखते हुए क्या हम उन्हें अपराधी मानते हैं? तो फिर प्रेम में लिप्त कॉफी हाउस की एक मेज पर या पार्क की बेंच पर दुनिया से निर्लिप्त दो प्रेमियों ने क्या अपराध किया है? केदारनाथ सिंह की कविता 'हाथ याद आती है-
'उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए

6 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

भैय्या चुनिदा है ...नाइस

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क्या तेवर हैं जनाब ... अच्छा लिखा है ...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा लेखन!!

Ramkumar singh ने कहा…

सभी का शुक्रिया।

कविता रावत ने कहा…

bahut achhi prastuti..
Bahut badhai

के सी ने कहा…

खूबसूरत.