शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

रॉकेट सिंह : ईंधन कम, आवाज ज्यादा


'अब तक छप्पनÓ और 'चक दे इंडियाÓ की कामयाबी के बाद शिमित अमीन से उम्मीदें बढ़ती है। जब फिल्म यशराज बैनर की हो और लेखक जयदीप साहनी तथा लीड में रणबीर कपूर हों तो ये उम्मीद और ज्यादा बढ जाती हैं। पोस्टर और प्रचार देखकर यूं लगता है कि रॉकेट सिंह एक हास्य फिल्म है लेकिन ऐसा नहीं है। निर्देशक शिमित अमीन और लेखक जयदीप साहनी ने जो जादू हॉकी के मैदान में एक कोच को लाकर अपनी पिछली फिल्म में किया ऐसा ही वे बिजनेस के मैदान में करने के इरादे से एक सेल्समैन को बिजनेसमैन बनाने की कहानी का ताना बना बुनते हैं लेकिन सीधी सपाट कहानी में बीच बीच में इसके वृत्त चित्र जैसा आभास होने लगता है।कहानी हरप्रीत सिंह बेदी यानी रणबीर कपूर की है। पढाई में कमजोर है लेकिन उसका कहना है कि दिमाग उसका कमजोर नहीं है। कैट का इम्तहान देने के बजाय वह तय करता है कि वह सेल्समैन बनेगा। उसके दिमाग में ईमानदारी का कीड़ा है। वह 'कारपोरेट जंगल में एक महात्माÓ है। उसके बॉस पुरी के मुताबिक उसमें वो काबिलियत है कि वह ऊपर भी जा सकता है और एकदम नीचे भी। लगातार नाकामी से उसके ऑफिस में ही उसका मजाक उड़ाया जाता है। उस पर कागज के रॉकेट फेंके जा रहे हैं। उसका बॉस सार्वजनिक रूप से उसकी तौहीन करता है। हरप्रीत को एहसास होता है कि उसे कुछ नया करना चाहिए। उसने उसी ऑफिस में रहते हुए यह एहसास होता है कि ग्राहकों के रिश्ते में ईमानदारी और उनका भरोसा जीतना महत्त्वपूर्ण है। उसने अपनी ही कंपनी रॉकेट सेल्स कारपोरेशन अपने ही ऑफिस से चलानी शुरू कर दी। एक से दो, दो से तीन, तीन से चार, चार से पांच और पार्टनर्स यह संख्या क्लाइमेक्स तक आठ हो जाती है। इस कंपनी के बनने, फिर बिगडऩे और फिर बनने की कहानी में ही बिजनेस करने के उसूलों पर एक लंबी चौड़ी पढ़ाई दर्शकों की हो जाती है। सेल्समैन की पीड़ा फिल्म में है लेकिन वह मेहमान की तरह है। मूल सूत्र है कि हर आदमी महत्त्वपूर्ण है, बशर्ते उसे सपनों और समर्पण पर यकीन हो।तकनीकी तौर पर फिल्म समृद्ध है। सेल्स बाजार की धोखाधड़ी पर तंज भी है। लेकिन बीच बीच में कहानी की रफ्तार धीमी हो जाती है। इंटरवल तक तो यह और भी धीमी है। सलीम-सुलेमान का संगीत ठीक ठाक है। वेक अप सिड और अजब प्रेम की गजब कहानी की कामयाबी के बाद रणबीर की स्टार वैल्यू का लाभ फिल्म को मिले तो अच्छा है। क्योंकि अब उनमें अभिनय का आत्मविश्वास दिखता है। बाकी यह एक औसत मनोरंजक फिल्म है। इससे अब तक छप्पन जैसी संवेदना और चक दे इंडिया जैसा जुनून तो दिखता ही नहीं है।

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