शनिवार, दिसंबर 19, 2009

अवतार : "इको फे्रंडली" विज्ञान फंतासी


बारह सौ करोड़ रूपए की लागत और पंद्रह साल की मेहनत के बावजूद जेम्स कैमरून की फिल्म "अवतार" आपको चमत्कृत ना करे, यह कैसे मुमकिन है। भावना और तकनीक की सिनेमाई यारी-दुश्मनी के बावजूद "अवतार" एक खूबसूरत फिल्म है। यह हमारे समय से आगे की फिल्म है। हम खुशकिस्मत हैं कि अपने समय में यह फिल्म देख रहे हैं। एक सौ बारह साल के सिनेमा के इतिहास में यह गर्व करने का भी मौका है कि चामत्कारिक कथा कहने की कला हमारे पास हजारों सालों से हैं, लेकिन उसी को आंखों से पर्दे पर देखने का सुकून भी अब हम ले सकते हैं।कथानक के लिहाज से अवतार बहुत चामत्कारिक फिल्म नहीं है। यह धरती के मनुष्यों के लालच की पोल खोलती है और सही मायनों में एक इको फ्रेंडली साइंस फैंटेसी है। यह मनुष्य और एक दूसरी दुनिया के नेवीज की रिश्ेतों की कहानी है। वैज्ञानिक ग्रेस आगस्टीन ने इन लोगों की जमीन पैंडोरा को खोज की है और मनुष्यों का एक पूरा दल इनकी जमीन के भीतर छुपे खनिज पर नजर गड़ाए है। जैक सुली को अवतार के जरिए इनकी दुनिया में भेजा जाता है। वह उनकी आदतों, रहन सहन को समझता है। उनकी "इको फें्रडली" जीवन शैली और मां ऎवा में उनकी आस्था से अभिभूत हो जाता है। उसे उसी दुनिया की लड़की नेतिरि से प्यार हो जाता है। इधर, आदमियों ने अपने गोला बारूद के साथ उन पर हमला कर दिया है। जैक सुली चूंकि मनुष्यों के लालच से वाकिफ है और नेवीज के प्रकृति प्रेम और सादगी से भी। वह मध्यस्थ बनने की कोशिश करता है लेकिन अब ना तो मनुष्य उसकी बात मानने को तैयार हैं और ना ही अपनी असलियत बताने के बाद नेवीज उस पर भरोसा करना चाहते हैं। बेहतरीन दृश्यों और भावनाओं के साथ वह अंतत: वह नेवीज का भरोसा जीतता है और मनुष्यों के खिलाफ युद्ध करने में वह नेवीज की मदद करता है। एक रोमांचक और रोंगटे खड़े कर देने वाली जंग में मनुष्य का लालच पराजित होता है। जैक सुली का अवतार एक "नेवी" के रूप में हो जाता है।तकनीक तो बेमिसाल है ही। हवा में लटकती विशाल चट्टानें। विमानों से भी तेज उड़ते शिकारी पक्षी। लंबी थूथन वाले नेवीज के वफादार घोड़े। उनकी नई भाषा और व्याकरण। मनुष्यों के अत्याधुनिक युद्धक विमान। सब कुछ एक जादुई दुनिया है। कैमरून के कथा कहने के जादुई अंदाज में ही दर्शक होने के नाते हम नेवीज की दुनिया में इतने घुल मिल जाते हैं कि आखिरी लड़ाई में हम मनुष्यों की हार पर जश्न मना रहे हैं।यह "टर्मिनेटर" के उस विस्मयकारी अहसास से बिल्कुल अलग है जब मशीनों से मनुष्य हार रहा है। यहां वह प्रकृति से हार रहा है और इस हार पर दर्शक अभिभूत होता है। धरती के खत्म होने की आशंका में कोपेनहेगन की माथापच्ची से कहीं ज्यादा आतंकित कर देने वाले अहसास से हम रूबरू होते हैं। नेवीज अपनी दुनिया पर हो रहे हमले को आसमानी मुसीबत कहते हैं। उन्होंने अपनी जमीन को बहुत खूबसूरत बनाया है। पहाड़, झरने, जानवर, देवी ऎवा के विशालकार पेड़। आत्माओं से संवाद करने का जादुई अहसास। सब कुछ हिंदुस्तानी लगता है। नाम तो है ही। इतना धन खर्च करने और सिनेमा के प्रति अटूट धैर्य के लिए जेम्स कैमरून को सलाम किया जाना चाहिए।

2 टिप्‍पणियां:

zeashan haider zaidi ने कहा…

इसका मतलब समय निकाल कर फिल्म देखनी पड़ेगी.

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छी समीक्षा की है