शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

अपनों पै करण, गैरों पै सितम



फिल्म समीक्षा: आय हेट लव स्टोरीज

-रामकुमार सिंह
करण जौहर के बैनर से रिलीज इस हफ्ते रिलीज ‘आय हेट लव स्टोरीज’ में लव और स्टोरीज की स्पेलिंग एसएमएस की जुबान वाली है। अंदाजा था कि यह उन दर्शकों के लिए हैं जिन्हें प्यार और भाषा दोनों के ही व्याकरण से खास फर्क नहीं पड़ता। अव्वल तो शीर्षक के बाद ही निर्देशक पुनीत मल्होत्रा सारे इंटरव्यूज में स्पष्टीकरण दे रहे थे कि फिल्म प्यार के खिलाफ नहीं है। उनकी बात सही है यह ना किसी के पक्ष में है ना किसी के खिलाफ। यह करण जौहर ब्रांड इश्किया भावुकताभरे सिनेमा का एक कमजोर ओर सामान्य संस्करण है। निर्देशक पुनीत मल्होत्रा करण के सहायक रहे हैं और वे नामी फैशन डिजायनर मनीष मल्होत्रा के रिश्‍तेदार हैं। जाहिर है, अपनों पर मेहरबान करण दर्शकों का खयाल कैसे रखते?
कहानी की पृष्ठभूमि करण जौहर ओर पुनीत मल्होत्रा के आत्मकथ्य जैसी है जिसमें प्रेम कहानियों पर फिल्म बनाने वाले वीर कपूर नाम के निर्देशक के सहायक जे या जय को प्रेम कहानियों में भरोसा नहीं है। उसकी आर्ट डायरेक्टर सिमरन का बॉयफे्रेंड राज है। सिमरन को बॉलीवुड टाइप प्रेम कहानियों में मजा आता है। वह जिंदगी को भी ऐसे ही रोमांटिक तरीके से देखती है। जय के साथ उल्टा है। जय और सिमरन को साथ काम करते हुए दोस्ती होती है। प्यार में बदलती है। इकतरफा प्यार में। सिमरन की तरफ से। वह राज को छोडऩा चाहती है लेकिन इधर जय ने मना कर दिया कि वह तो प्रेम कहानियों में यकीन ही नहीं करता। इंटरवल के बाद जय को लगता है कि वह सिमरन के बिना नहीं रह सकता और प्रेम प्रस्ताव सिमरन तक ले जाता है। छोटा मोटा चालू टाइप का ट्विस्ट है। यह बताने की जरूरत है नहीं कि सिमरन किसकी हुई? ऑफ कोर्स जय की।
फिल्म के सारे फ्रेम वाइन, बीयर, किताबें, फिल्मी सैट से भरे पूरे दिखते हैं और अच्छे लगते हैं। बहुत ही बोलती हुई फिल्म है। हर पात्र के पास बहुत सारी फालतू बातें हैं। हमारी नई पीढ़ी इतनी फालतू बातें नहीं करती। शॉर्ट एंड स्वीट बातें करती हैं। उनके मैसेज बॉक्स में बड़े शब्दों के भी छोटे रूप हैं। लेकिन इस फिल्म के पात्र लगातार बोलते ही रहते हैं। पूरी फिल्म में पीछे वॉइसओवर ने रही सही कसर पूरी कर दी। अभी तक की फिल्में देखकर इमरान खान की तारीफ सिर्फ इसीलिए नहीं की जा सकती कि वह आमिर का भतीजा है। उसके चेहरे पर अभिनेता वाले भाव ही नहीं आते हैं। सोनम बेशक अच्छी लगी हैं। खिली खिली सी। इतने सारे डायलॉग हैं कि आपको फुरसत ही नहीं है, कि फ्रेम और लोकेशन या एक्टर्स की खूबसूरती देखें।
मुमकिन है यह किशारों और युवाओं के बीच वाले उन सारे दर्शकों के अच्छी लगे, जो हर चीज को लेकर संदेह की स्थिति में रहते हैं। लेकिन कुछेक हिस्सों को छोड़ दें तो फिल्म के संवाद और कहानी जादुई नहीं है। यह एक साधारण सी प्रेम कहानी है। इस पीढ़ी को इससे बेहतर अनुराग कश्यप और इम्तियाज अली समझ रहे हैं। वे अलग प्रेम कहानियां कह रहे हैं। पुनीत मल्होत्रा में वो बात नहीं। विशाल शेखर के गाने औसत से बेहतर हैं। इनमें भी टाइटल ट्रेक और जब मिला तू ज्यादा अच्छे हैं। सामने कोई बड़ी रिलीज नहीं है, इसका फायदा शायद फिल्म के कारोबार को मिले।

2 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

ओह, मन उदास हुआ. सोचा था कि ऑफ़ बीट होगी.

varsha ने कहा…

जिन्हें प्यार और भाषा दोनों के ही व्याकरण से खास फर्क नहीं पड़ता....
badhiya sameeksha.