शुक्रवार, नवंबर 11, 2011

फिर वही कहानी लाया हूं, लेकिन संगीत नया है!

रामकुमार सिंह
सोचा ना था और जब वी मेट देखने के बाद मेरे जैसा कोई भी साधारण दर्शक यह अंदाजा लगा सकता है कि इम्तियाज अली के पास पर्दे पर कहानी कहने की एक कला है लेकिन अब उनकी फिल्में देखते हुए अनुमान लगाना आसान हो जाता है कि उनके पास कहानी एक ही है और उसी को आगे-पीछे करके कहते रहते हैं। इस वक्तव्य में दोनों ही चीजें निहित है। आप चाहें तो इम्तियाज को एक ही किस्सा बार-बार कहने के लिए खराब भी कह सकते हैं और यह भी कि एक किस्से को बार बार उसी ताजगी से कहने के लिए तारीफ भी कर सकते हैं।
दिल्ली के जनार्दन जाखड़ उर्फ जोर्डन के एक लड़की से दोस्ती करने, उसकी शादी हो जाने के बाद प्यार करने और हद दर्जे तक प्यार करने के बाद पिटाई खाने और दिल टूटने की आवाज से निकले संगीत के सहारे रॉकस्टार हो जाने, प्राग घूम आने और प्रेमिका को एक गंभीर बीमारी हो जाने और प्रेमी से पुन: मिलने तक की कहानी है रॉकस्टार।
मेरी समझ के हिसाब से रॉकस्टार एक मनोरंजक फिल्म है लेकिन इससे इम्तियाज अली का विस्तार नहीं होता, वे खुद को रिपीट करते हैं। इम्तियाज की फिल्म देखने के लिए मैं थिएटर में घुसने से पहले अंदाजा लगाता हूं कि यह ऐसी फिल्म होगी और वह लगभग वैसी ही लगती है।
खोसला का घोंसला के बाद ओए लकी लकी ओए और लव सेक्स धोखा देखने के बाद एक निर्देशकीय ग्राफ देखने के लिए मैं दिबाकर बनर्जी की ओर देखता हूं। धारावी से लेकर हजारों ख्वाहिशें ऐसी और ये साली जिंदगी के सुधीर मिश्रा को देखता हूं।
बॉक्स ऑफिस के हिसाब से रॉकस्टार की ताकत सितारा रणबीर कपूर और एआर रहमान का दिलकश संगीत है। रणबीर कपूर की सितारा छवि से इतर भी सोचकर कह रहा हूं कि वह चरित्र जिस पृष्ठभूमि से है, उसे उन्होंने ठीक से निभा दिया है। रही बात नरगिस फाखरी की, तो वो हिंदी बोलते हुए अखरती हैं लेकिन अखरती तो मुझे कटरीना कैफ भी है और तमाम वे अभिनेत्रियां, जो अपनी पूरी खानदानी पहचान के साथ अपने अभिनय का कहर ढाती हैं। लिहाजा इसके लिए नरगिस फाखरी और इम्तियाज दोनों को ही दोष देना बेमानी है। यह हमारी सिनेमा परंपरा का ही विस्तार है और सही मानें तो दर्शकों को खास फर्क नहीं पड़ता। वे नरगिस को देखते हुए उतनी ही खुशी महसूस करते हैं।
हजरत निजामुद्दीन दरगाह पर कुन फायाकुन फिल्माया गया है। गीत संगीत, फिल्मांकन और एक सूफियाना रोशनी सब मिल कर विरेचन करते हैं। संगीत के साथ कैमरा पूरी दरगाह से गुजरते हुए गुंबदों तक जाता है। मैं केवल इतना सा हिस्सा देखने के लिए एक बार फिर थिएटर में जा सकता हूं। साड्डा हक एत्थे रख तो जादुई है ही।
शम्मी कपूर फिल्म में एक उस्ताद हैं। शहनाई वादक हैं और शास्त्रीय संगीत को न समझ पाने वाले रॉकस्टार की बातें सुनकर उसके बारे में संगीत कंपनी के मालिक धींगरा कहते हैं – यह बड़ा जानवर है, तुम्हारे पिंजरे में नहीं आएगा। अपना रास्ता खुद बनाएगा। यह संवाद बाहर निकलने के बाद भी याद रहता है। शायद इसलिए भी कि एक दादा अपने पोते को जाते-जाते दुआ ही देकर गया हो।
इम्तियाज अली की लड़कियों के बारे में भी आप पूर्वानुमान लगा सकते हैं। वे बिंदास और खिली-खिली रहती हैं। इस फिल्म वाली फाखरी को एक गंभीर बीमारी देकर इंटरवल के बाद का मामला सीरियस कर दिया लेकिन इंटरवल से ठीक पहले रणबीर और नरगिस का चुंबन याद रहता है। लेटे हुए मालिश करवाता म्यूजिक कंपनी का मालिक ढींगरा (पीयूष मिश्रा) जोर्डन (रणबीर) से बातचीत कर रहा है। यह दृश्य याद रहता है। संपादन के लिहाज से भी फिल्म थोड़ी लंबी लगती है। पता नहीं इसका दोष आरती बजाज को दें या खुद निर्देशक को। एआर रहमान का संगीत फिल्म को ऊपर तक ले जाता है और उसमें इरशाद कामिल के गीत एक नया रंग भरते हैं।
बेशक, रॉकस्टार देखकर मैं खुश हूं लेकिन उतना नहीं जितना होना चाहता था।

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर समीक्षा, देखने का मन बन गया है

Manoj K ने कहा…

a very fine review, thanks

Manoj K ने कहा…

very nicely written review, thanks

रंजना ने कहा…

बढ़िया विवेचना...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बेहतरीन लिखा है,