बुधवार, जुलाई 27, 2011

जिंदगी मिलेगी ना दोबारा

निर्देशक जोया अख्तर की फिल्म जिंदगी मिलेगी ना दोबारा एक खूबसूरत फिल्म है। अगर आप पुरानी फिल्मों से तुलना करने के आदी हैं तो इसमें दिल चाहता है और थ्री इडियट का मिश्रण है। गोया कि इसमें जिंदगी को देखने का एक आभिजात्य नजरिया है, लेकिन इसे आप जहां से खड़े होकर देखेंगे, खूबसूरत ही नजर आएगी।

कबीर (अभय देओल) की शादी होने वाली है। वह अपने दो पुराने दोस्तों के साथ स्पैन की बैचलर ट्रिप पर जाना चाहता है। दूसरे दोस्त हैं कॉपी राइटर और कवि इमरान (फरहान अख्तर) और फाइनेंशियल ब्रेाकर अर्जुन (रितिक रोशन)। इमरान के पास भी स्पैन जाने का मिशन है लेकिन हरदम पैसे कमाने में लगे हुए और चालीस के बाद रिटायर होने की प्लानिंग कर चुके अर्जुन को मनाने में जोर आता है। 

तीनों दोस्त एक यात्रा पर निकलते हैं। यह यात्रा उनके बीते हुए दिन लौटाती है और जब वापस लौटते हैं तो उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई है। असल में यह केवल इन तीन दोस्तों की नहीं, बल्कि दर्शकों की भी एक तरह से स्पैन की यात्रा है। करीब पौने तीन घंटे की इस यात्रा में दर्शक स्पैन की अनछुई लोकेशन्स का आनंद लेते हैं और एक जीवन दर्शन तो साथ चलता ही है। कथा प्रवाह की सहजता और संवादो में विट आनंददायी हैं। 

जिंदगी से उठाए किस्से और कुछ जिंदगी में वांछित रोमांच सिनेमा के पर्दे पर है। दरअसल पूरी कहानी के अन्तप्रüवाह में प्यार, पैसा और खुद की तलाश में सारे पात्रों का एक समानांतर संघर्ष है लेकिन वह ऊबाऊ नहीं लगता और सारे पात्र युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि चरित्रों की तरह उभरकर आए हैं। चूंकि निर्देशक एक लड़की है, तो लड़कियों के दोनों ही चरित्र कटरीना और कल्कि में जो खूबसूरती और उनके भीतर की लड़की को दिखाया है, वह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि हमारे यहां बहुत कम फिल्मों में लड़कियां अपने पूरे ख्वाबों के साथ के मौजूद होती हैं। 

आप मानें तो फिल्म की एक खूबी यह भी है कि नए सिनेमा और नई जुबान के सिनेमा के नाम लगातार आ रही एडल्ट फिल्मों से इतर यह एक ऎसी फिल्म है जिसे आप सपरिवार देख सकते हैं। फिल्म के भीतर इस्तेमाल जावेद अख्तर की कविताएं अच्छी लगती हैं। एक तरह पूरी फिल्म की कविता की तरह बहती है। एक खूबसूरत कहानी के खूबसूरत और ईमानदार फिल्मांकन के लिए यह फिल्म आप देखें। थोड़ी देर के लिए ही सही, फिल्म जिंदगी जीने का एक नया नजरिया देती है