मंगलवार, मार्च 25, 2008

राजस्थान दिवस के जश्न में मुम्बई की फौज

राजस्थान दिवस के जश्न को आप नहीं देखने जा रहे हैं तो यह आपकी गलती है। सरकार ने तो कोई कसर छोड़ी नहीं है। ये राजस्थान के ऊबाऊ स्थानीय कलाकार हैं, उनसे क्या कोई राजस्थान दिवस में रंगत लाई जा सकती है। लिहाजा सरकार ने सारी फौज मुम्बई से बुलाई है। ऐसी फौज का खर्च भी रीयल एस्टेट की तरह है। मेजबान का चेहरा देखकर मुंहमांगी कीमत मांग लो। हजार रुपये गज में बढ़ा दो। ये हमारे लोकल आटिüस्ट बयानबाजी बहुत करते हैं। इनका पत्ता साफ करो। साबरी बंधु गाते होंगे राजस्थान में कव्वाली, वे बड़े तो तभी बनेंगे, जब राजकपूर अपनी फिल्म हिना में उन्हें गाने का मौका दें। इसके बाद हिना फेम साबरी बंधु हो गए। लिखा होगा कन्हैया लाल सेठिया ने कि या तो सुरगां ने सरमावै, ई पर देव रमण न आवै, धरती धोरां री। राजस्थान की महिमा का बेहतरीन दस्तावेज है, लेकिन अब गीत लिखने के लिए आप कई लाख, कई हजार रुपये देंगे। क्योंकि यह इमोशनल मामला नहीं है। क्योंकि यह सब नेटवकिZग का मामला है। इसे यूपी या मुम्बई के जावेद अख्तर या प्रसून जोशी लिख सकते हैं।राजस्थान दिवस में अपनी प्रस्तुति को लेकर अगर आप आ रहे हैं, तो अपनी ब्रांड वैल्यू बताइए। आपके पास नहीं हैं तो आप फटीचर लोग हैं। राजस्थान सरकार ने आपकी ब्रांड वैल्यू बनाने का ठेका थोड़े ही लिया है? और ये क्या लोकल आटिüस्टों ने रट लगा रखी है कि हमें नहीं बुलाया? क्या आपको नेटवकिZग आती है? नहीं आती है तो चिल्लाते क्यों हैं? सिफारिश लाइए। आत्मसमर्पण करिए, तब जाकर कहीं आपका नम्बर मंच पर चढ़ने के लिए आएगा।खैर, जो गंभीर लोग हैं वे कह सकते हैं कि ऐसी कोई जरूरत थोड़े ही है राजस्थान दिवस समारोह हो और राजस्थानियों को ही मौका मिले। रेवडि़यां बंट रही हैं, तो देश के सभी समान नागरिक समान ढंग से बांटकर खाएं। तो फिर ऐसा क्या है, जो तकलीफदेह है।इस सरकार का कोई सांस्कृतिक चेहरा नहीं है। यूं लगता है जैसे तर्कहीन ढंग से आपने तय किया है कि पैसा बहा दो, उससे सांस्कृतिक समृद्धि आएगी। पुलों पर चित्र बनाने का बजट तय कर दो। चौराहों पर कुछ नाचती गाती मूर्तियां लगा दो। चलिए अच्छा है। एक गैर सरकारी संगठन के साथ जुड़कर सांस्कृतिक आयोजन कराओ। वो आपकी सारी सरकारी मशीनरी को इस्तेमाल करेगा और अपने प्रायोजक ढूंढ़कर कमाएगा। अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे तो ऐलान किया था कि राज्य की सांस्कृतिक नीति बनेगी। एक टूटा फूटा दस्तावेज भी शायद तैयार हुआ था। अब क्या स्थिति है, मेरी जानकारी में नहीं है। पांच साल उन्होंने निकाल दिए। जवाहर कला केन्द्र को ऑटोनोमस बनाने का ऐलान हुआ था। इस सरकार में अधिसूचना जारी हुई, लेकिन अब भी नौकरशाही के ही कब्जे में है। अभी तक ऑटोनोमस बॉडी के मेम्बर ओर चैयरमैन की नियुक्ति नहीं हुई। साल डेढ़ साल पहले भानु भारती लगभग तय हो गए थे लेकिन खबर लीक हो गई और सांस्कृतिक कारसेवा हो गई। मामला अटक गया। आज वहां सरकारी अफसर ही तय करते हैं कि क्या होगा, क्या नहीं? रवीन्द्र मंच की जर्जर हालत है। कुछ खबरें छपती हैं, तो बजट निकल आता है और फिर बजट भी गायब हो जाता है और हालात भी नहीं सुधरते। रवीन्द्र मंच पर एक प्रोफेशनल नाटक करने में आपको पसीना आ जाएगा। ना लाइट ठीक लगी हैं, ना साउंड ठीक है। दिलचस्प बात यह है कुछ सरकारी इमारते तो ब्याह शादियों के लिए दी जाने लगी हैं। रवीन्द्र मंच पर भी आने वाले दिनों में नाटक कम और शादियां ज्यादा हुआ करेंगी। मेरी इन बातों का यह अर्थ ना लगाया जाए कि ऐसा कोई समारोह होना ही नहीं चाहिए। बेशक होना चाहिए लेकिन आपका लक्ष्य क्या है? राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण देने का, राजस्थान दिवस के नाम पर सिर्फ जयपुर के लोगों को मनोरंजन करने का या राजस्थानी लोगों को आत्म गौरव महसूस करने का मौका देने का। जाहिर है, एआर रहमान, पलाश सेन के पास यह ताकत नहीं है कि राजस्थानी लोगों को यह समझा सकें उनका राज्य महान है। आप देखिए, नाटक वाले आएं, चाहे सिनेमा वाले, वे सब मंच से हमेशा कहेंगे, जयपुर के लोग बहुत गुणीजन हैं, देश के किसी भी शहर में उतना बेहतर महसूस नहीं करते जैसा जयपुर में करते हैं, असल में अहमदाबाद और इंदौर में भी ये लोग शहर का नाम बदलकर यही वाक्य दोहराते हैं। यह उनकी बाजारी जरूरत है। तो और नहीं तो कम से अपनी माटी के सपूतों को तो याद करिए। सेलिब्रिटी भी चाहिए तो भरे पड़े हैं, सिनेमा में, रंगमंच में, गायन में, लेखन में। सवाल क्षेत्रीयता का नहीं है, सिर्फ इमोशन्स का है। पिछली सरकार का मैं कोई हिमायती नहीं हूं, लेकिन आप तारीफ करेंगे कि राजस्थान के बाहर बसे सभी लोगों का सम्मेलन कराने की पहल की। वहीं से आए लोगों ने कहा कि दुनिया उनका लोहा मानती है, लेकिन अपने ही राज्य में उन्हें कम इज्जत मिलती है। बाद में कुछेक लोगों ने काम किया, कुछ ने सरकारी सुविधाओं का फायदा उठाया। उन्होंने गूंज किया और अपने गंगानगर के जगजीत सिंह को तो बुलाया ही, देश छोड़ पाकिस्तान बसे दो महान कलाकारों के लिए पलक पांवड़े बिछाए कि वे अपनी माटी पर लौटें। आपको याद होगा कि बुजुर्ग मेहदी हसन भी आए और अपनी माटी के लोगों की मनुहार में बीमारी के बावजूद गाते ही चले गए। रेशमा भी आईं। बुलाइए, अपने कलाकारों को बार बार बुलाइए। आप सरकार हैं, संस्कृति के बाजार में ग्लैमर की दुकान चलाने नहीं बैठे हैं, आप एक स्टेट की स्थापना के मौके को उस स्टेट के लोगों को गर्व करने का मौका दें, ना कि उन्हें मनोरंजन के नाम पर बॉलीवुड के ठुमकों की अफीम में बेहोश करके उम्मीद करें कि लोग सरकार का गुणगान करें। रही बात कलाकारों की। बार-बार की उपेक्षा और दरबार उर्फ सरकार पर आçश्रत रहने की उम्मीदों में वे एक संगठित विरोध का साहस तक नहीं रख्ाते हैं। विश्व मोहन भट्ट या इला अरुण अकेले बयान दें, उससे सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगती। आप इन लोगों से आग्रह करें कि वे अगुवाई करें। संगठित विरोध सरकार तक पहुंचाएं। नौकरशाहों और इवेन्ट मैनेजरों की पोल खोलें। लेकिन दुभाüग्य से हमारे कलाकार ऐसा भी नहीं करते। बोलना पड़ेगा। इस स्टेट की कला और संस्कृति को पहचान देने का संघर्ष आपने किया है। बीज आपने बोए हैं, तो मेहरबानी कर यह फसल नेताओं और इवेन्ट मैनेजरों को ना काटने दें। इस फसल पर आपका हक है। दागिस्तानी लेखक रसूल हमजातोव का उल्लेख किया एक किस्सा याद आता है-कुछ लोगों ने पेड़ को उखाड़ दिया और उस पर बने चिडि़या के घौंसले को उजाड़ दिया।किसी ने पेड़ से पूछा- तुम्हें क्यों उखाड़ा गया?पेड़- क्योंकि मैं बेजुबान हूं। चिडि़या से पूछा-तुम्हारा घौंसला क्यों उजाड़ दिया? चिडि़या-क्योंकि मैं बहुत बोलती थी। तो कम से कम उतना तो बोलिए कि आपका वजूद बना रहे।

2 टिप्‍पणियां:

manish ने कहा…

aap ki baat kuch had tak sahi ho sakti hai lekin jaipur ke log agar rajasthan divas ke naam per hi sahi A R Rahmaan jaison ko free main dekh sun le to usme burai kya hai. varna aise kalakaaron k show yadi koi dharam sajjan kraayen to aam aadmi na to use dekhne ke liye paisa kharch kar sakta hai aur na free pass ka jugad kar sakta hai.rahamaan jaison ka free show to sarkar hi kara sakti hai. vaise bhi mumbai waalon ki is fouj main sunidhi aur shreya rajasthan ki hi hain. jahan tak rajasthan ke local kalakaron ki baat hai to sahi hai ki inko mahtva milna chahiye, lekin hum yeh bhi dekten hain ki jab ink programme hote hain to kitne log inhe dekhne sunne aate hain. to yeh ladai to chalti rahegi, lekin mumai waalon ki fouj ka mahtva kam nahin hai, phir kalakaar to voh bhi hain hi.janta ke utsav main uske pandida kalkaar use mil rahe hain yeh kya kam hai.

DUSHYANT ने कहा…

manish bhai se asahmati ke saath kahnaa chahtaa hun suwidhaayen sidhaant aur moral ko kill karne kaa saadhan bantee hain aur hamare hukmraan yehee chahte hain ..is'nt it?