film READY review
नो एंट्री की कामयाबी के बाद अनीस बज्मी कॉमेडी की एक सी रस्सी पर ही चलते रहे हैं, बस उनके हाथ का बांस बदल जाता है। इस बार फिर उनके पास सलमान खान हैं। एक लाइन में कहें तो रेडी सलमान खान और अनीस बज्मी टाइप मनोरंजक फिल्म है लेकिन ना तो यह दबंग है और ना ही नो एंट्री।
रेडी तेलुगू की इसी नाम से बनी फिल्म का रीमेक है और हिंदी में इसकी कहानी, गीत, संगीत और अभिनय से अलग एक ही ताकत है, सलमान खान। इस फिल्म में भी उनका नाम प्रेम है। सरनेम कपूर है और और लघु माफियानुमा जोकर चौधरियों की भांजी संजना (आसिन) से उसको प्यार हो जाता है। कहानी का रायता फैलता है और उसे समेटकर बज्मी वापस बर्तन में डालते हैं। रेडी हंसाती है, टाइमपास करती है और एक स्तर पर पहुंचने के बाद थोड़ी लंबी और उपदेशात्मक हो जाती है, जो कि अनीस बज्मी की ज्यादातर फिल्मों के साथ होता है। इंटरवल से पहले यह शिकायत ज्यादा है। इंटरवल बाद भी फिल्म को काटपीटकर दस मिनट और छोटा किए जाने की गुुंजाइश थी।
यहां प्रियदर्शन और अनीस बज्मी टाइप मिश्रित स्पर्श फिल्म में साफ दिखता है और सलमान का स्पर्श उसे कामयाबी की गारंटी देता है। फिल्म का गाना डिंका चिका सबसे ज्यादा असर छोड़ता है। खासकर जिस तरह उसे फिल्माया गया है और उसकी कोरियोग्राफी जिसमें सलमान खान पैंट की जेब में हाथ डालकर हिलाते हैं। रेडी की अच्छी बात यह भी है कि एक आध जगह द्विअर्थी संवादों को छोड़कर यह पारिवारिक फिल्म भी लगती है। सलमान आसिन और परेश रावल को छोड़कर फिल्म के लगभग सभी पात्र लाउड हैं।
लेकिन भारतीय दर्शक को इससे भी अपच नहीं होती। बहरहाल एक्शन कॉमेडी के घालमेल और दृश्य रचने में निर्देशकीय निरंकुशता के बावजूद टाइमपास के लिए आप रेडी देख सकते हैं। क्योंकि थियेटर से बाहर आते समय आपके चेहरे पर मुस्कराहट रहती है।
नो एंट्री की कामयाबी के बाद अनीस बज्मी कॉमेडी की एक सी रस्सी पर ही चलते रहे हैं, बस उनके हाथ का बांस बदल जाता है। इस बार फिर उनके पास सलमान खान हैं। एक लाइन में कहें तो रेडी सलमान खान और अनीस बज्मी टाइप मनोरंजक फिल्म है लेकिन ना तो यह दबंग है और ना ही नो एंट्री।
रेडी तेलुगू की इसी नाम से बनी फिल्म का रीमेक है और हिंदी में इसकी कहानी, गीत, संगीत और अभिनय से अलग एक ही ताकत है, सलमान खान। इस फिल्म में भी उनका नाम प्रेम है। सरनेम कपूर है और और लघु माफियानुमा जोकर चौधरियों की भांजी संजना (आसिन) से उसको प्यार हो जाता है। कहानी का रायता फैलता है और उसे समेटकर बज्मी वापस बर्तन में डालते हैं। रेडी हंसाती है, टाइमपास करती है और एक स्तर पर पहुंचने के बाद थोड़ी लंबी और उपदेशात्मक हो जाती है, जो कि अनीस बज्मी की ज्यादातर फिल्मों के साथ होता है। इंटरवल से पहले यह शिकायत ज्यादा है। इंटरवल बाद भी फिल्म को काटपीटकर दस मिनट और छोटा किए जाने की गुुंजाइश थी।
यहां प्रियदर्शन और अनीस बज्मी टाइप मिश्रित स्पर्श फिल्म में साफ दिखता है और सलमान का स्पर्श उसे कामयाबी की गारंटी देता है। फिल्म का गाना डिंका चिका सबसे ज्यादा असर छोड़ता है। खासकर जिस तरह उसे फिल्माया गया है और उसकी कोरियोग्राफी जिसमें सलमान खान पैंट की जेब में हाथ डालकर हिलाते हैं। रेडी की अच्छी बात यह भी है कि एक आध जगह द्विअर्थी संवादों को छोड़कर यह पारिवारिक फिल्म भी लगती है। सलमान आसिन और परेश रावल को छोड़कर फिल्म के लगभग सभी पात्र लाउड हैं।
लेकिन भारतीय दर्शक को इससे भी अपच नहीं होती। बहरहाल एक्शन कॉमेडी के घालमेल और दृश्य रचने में निर्देशकीय निरंकुशता के बावजूद टाइमपास के लिए आप रेडी देख सकते हैं। क्योंकि थियेटर से बाहर आते समय आपके चेहरे पर मुस्कराहट रहती है।
1 टिप्पणी:
समय बिताना होगा तो जायेंगे।
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