सोमवार, जून 20, 2011

तुझको देखा है मेरी नजरों ने तेरी तारीफ हो मगर कैसे



                   DAAN SINGH JI  IN HOSPITAL ON 13 JUNE 2011
उन्होंने आखिरी बार संगीत फिल्म भोभर में दिया है। हमारे एक मित्र के साथ जब फिल्म के गाने को लेकर जब हम उनसे मिले थे तो अपना पहला गीत होने के कारण मैं डर रहा था कि कहीं वे यह ना कह दें कि यह क्या गीत हुआ? लेकिन उन्होंने पहले कहा, गाने के बोल बताइए। फिर कागज अपने हाथ में लिया। गाना पढा और बोले, उस्ताद, अच्छा लिखा है।

 एक मशहूर गायिका के प्रेम प्रसंग के बारे में मैंने उनसे इसलिए पूछ लिया था कि बहुत कुछ जानते थे लेकिन वे तुरंत पलटकर बोले, मैं जानता हूं आप क्या पूछ रहे हैं लेकिन मैं कुछ नहीं बोलंूंगा, मैं रहूं ना रहूं ये शब्द रहेंगे और मुझे ऐसे किसी प्रसंग से कोई प्रचार नहीं चाहिए। कोई विवाद नहीं चाहिए। एक मशहूर निर्देशक ने उनसे किए वादे को ना निभाया और यह भी जब मैंने पूछा तो वे मौन हो गए। उन्होंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की। यहां तक परिवार में हुए हादसों के बारे में भी वे कम बात करते थे। वे संगीत को जीते थे और बस उसी की धुन में मस्त रहते थे। उनकी मृत्यु से पांच दिन पहले ही जब हम अस्पताल में उनसे मिले थे तो उन्होंने वादा किया था कि रामजी, मैं ठीक होते ही आपको दूसरी कंपोजिशन सुनाउंगा। आपने जो लिखा है, उसमें थोड़ा कबीर का अगोचर राम है, थोड़ा रहस्यवाद है। धुन भी वहीं से निकालकर लाऊंगा। ऐसे उत्साही और जिंदादिल थे संगीतकार दान सिंह, जो इस ताउम्र इस शहर में रहे, मुंबई गए और कुछ चुनिंदा अमर धुनें रचकर इसी शहर में लौट आए और यहीं से हमेशा के लिए विदा हो गए। उन्होंने ना लोगों की, ना मुंबई की और ना ही सरकार की बेरूखी पर कभी अफसोस जताया और ना ही दूसरे कलाकारों की तरह बेचारगी का रोना रोया। हां, राजनीति और निरर्थकताओं से भरी हमारी अकादमियों और सरकारों ने भी कभी उनसे पूछने और उन्हें कुछ सौंपने की जहमत नहीं उठाई।
वे अपने गुरु खेमचंद्र प्रकाश के जिक्र मात्र से रोमांचित हो उठते थे। एक बच्चे सी चपलता के साथ कई किस्से एक साथ सुना डालते थे।  अपने गुरु की ही तरह उन्होंने चुनिंदा धुनें बॉलीवुड को दी लेकिन वे सब अमर धुनें हैं। मुकेश उनके प्रिय थे और वो तेरे प्यार का गम, इक बहाना था सनम, जिक्र होता है जब कयामत का तेरे जलवों की बात होती है गीतों की अमर धुनें बनाईं।
गुलजार के लिखे पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो की की रिकॉर्डिंंग पर जब मुकेश आए तो उन्होंने दान सिंह से धुन सुनते ही कहा, दादा यह गाना तो मैं सुनकर आया हूं इसी धुन पर। तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं पूजा, तुम्हीं देवता हो, तुम्हीं देवता हो। जैसा कि दान सिंह बताते थे कि मुकेश ने हंसकर कहा था किसी दिन आपने गाफिल होकर कहीं सुना दी होगी लेकिन यह धुन अब आपकी नहीं रही और दान सिंह बोले, आप आ ही गए हो, गाना रिकॉर्ड आज ही होगा और यह लो नई धुन। और इस तरह पुकारो मुझे नाम लेकर पुकारो की एक नई धुन हाथोंहाथ उन्होंने तैयार कर दी।
इन दिनों उनकी पत्नी डॉ. उमा याज्ञनिक पूरे समर्पण के साथ उनकी सेवा कर रही थीं। उनकी मुहब्बत और नोंक झोंक का मैं गवाह रहा हूं। चाय पिलाने के बाद जब वे पूछती कि चाय कैसी बनी है, वे बोले, उम्दा। बोली, अभी इनके सामने तारीफ कर रहे हो लेकिन इनके जाते ही कहोगे कि उमा आजकल पता नहीं तुम्हें क्या हो गया है, तुम चाय बनाना भूल गई हो।
उन्होंने आखिरी बार संगीत फिल्म भोभर में दिया है। हमारे एक मित्र के साथ जब फिल्म के गाने को लेकर जब हम उनसे मिले थे तो अपना पहला गीत होने के कारण मैं डर रहा था कि कहीं वे यह ना कह दें कि यह क्या गीत हुआ? लेकिन उन्होंने पहले कहा, गाने के बोल बताइए। फिर कागज अपने हाथ में लिया। गाना पढा और बोले, उस्ताद, अच्छा लिखा है। और अगले ही दिन दो धुनें तैयार थी। वे युवा निर्देशक गजेंद्र श्रोत्रिय से बोले, आपको पसंद ना आएगी तो और धुनें सुनाउंगा। आप बेहिचक बताइए। वे इतने सहज और दंभ रहित थे। अगली बार जब हम बीमारी में उनसे घर मिलने गए थे तो बोले, मैंने कहा था ना रामजी कि आपने अच्छा लिखा है। आज मुझे उसके बोल याद हैं और यूं लगता है जैसे मुझ पर ही लागू हो रहे हैं, देह मिली, संग दरद मिल्यो, उगतो सूरज ढळै है रोज। और फिर वे गाने के मुखड़े पर आए कि उग म्हारा सूरज तनै भोर बुलावै, सांझ सूं भटक्यो, घर क्यूं ना आवै। बोले, अपना सूरज ढूंढऩे की यह बहुत बड़ी पुकार है, यह अमर हो जाएगी। इस स्नेह से मेरी आंखें नम थीं।
मुझे उन्हीं के संगीतबद्ध किए माय लव फिल्म गीत की पंक्तियां याद आती हैं जिसमें आनंद बख्शी के बोल और मुकेश की आवाज है-
तुझको देखा है मेरी नजरों ने तेरी तारीफ हो मगर कैसे,
कि बने यह नजर जुबां कैसे कि बने यह जुबां नजर कैसे
ना जुबां को दिखाई देता है, ना निगाहों से बात होती है
जिक्र होता है जब कयामत का तेरे जलवों की बात होती है।
(published in rajasthan patrika on 19 june 2011)

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