मंगलवार, जुलाई 31, 2018

नई कहानी ‘सोणा कहाँ है’ का एक अंश

पिछले दिनों लम्बे समय के बाद एक कहानी लिखी। हमारे आदरणीय और पूर्वज प्रेमचंद की जयंती पर उस कहानी का एक अंश साझा कर रहा हूँ , क्यूँकि इस कथा में उनका ज़िक्र है।




शहर में लेखक के होने की खबर सुनकर एक दिन उसे एक बड़े स्‍टूडियो की मालकिन ने चाय पर बुलाया। उनके आस पास दस बारह लोग बैठे थे। वे सब के सब लोग अंग्रेजीदां थे। विदेश से पढे हुए। ऊँची डिग्री वाले। हाई फाई। महिला ने परिचय कराया कि यह उनकी ‘क्रिएटिव टीम’ है।
लेखक ने कुछ किस्‍से सुनाए। सब बहुत खुश हुए। सबने पूछा, ये किस्‍से तुमको कहां से मिले। बल्कि एक क्रिएटिव तो अति उत्‍साह में यह भी कह गया कि लेखक है, तो हम सबका चूल्‍हा चलता है। अगर वह कहानी लिखना बंद कर देगा तो हम सब लोग बरोजगार हो जाएंगे। ऐसा कहने पर उस क्रिएटिव को डांट खानी पड़ी। वह चुप हो गया।
उसने कहा, ‘ये किस्‍से मुझे विरासत में मिले हैं। मेरे दादा प्रेमचंद से मैंने सीखा है। वे मुझे सुनाते हैं और मैं लिखता हूं।
पहला क्रिएटिव बोला, ‘ओह तो आपकी कहानियां ओरिजिनल नहीं हैं। आपके दादा की कहानियां हैं।’
लेखक बोला, ‘जी, उतनी ओरिजिनल तो नहीं है, जितनी आप हॉलीवुड की फिल्‍में देखकर लिखवाते हो।’
दूसरा क्रिएटिव बोला, ‘कल आप प्रेमचंद जी को भी यहां आफिस लेकर आइए। मीटिंग करवाइए। हम सीधे उन्‍हीं से बात करेंगे।’
लेखक बोला, ‘वो सिर्फ मुझे किस्‍से बताते हैं। आपको नहीं बताएंगे। स्‍टूडियो नहीं आएंगे।’
तीसरा क्रिएटिव बोला, ‘क्‍यों‍ नहीं आएंगे।’
लेखक बोला, ‘क्‍योंकि वो एक बार इस शहर में आए थे और निराश होकर वापस लौट गए थे।’
चौथा क्रिएटिव बोला, ‘अरे भाई, हम उनकी कहानी पर फिल्‍म बनाएंगे। वे मशहूर हो जाएंगे। अभी टिकट भेज देंगे, कल सुबह की फ्लाइट से बुलाओ उनको।’
लेखक घिर चुका था। उसे सच्‍चाई बताने को मजबूर होना पड़ा, ‘वे अब इस दुनिया में नहीं रहे, इसलिए नहीं आ सकते।’
पांचवा क्रिएटिव बोला, ‘लेकिन आप तो कह रहे थे कि आप उनसे बातें करते हैं?’
लेखक ने कहा, ‘मैं सही कह रहा था। मैं आपको कैसे समझाऊं कि मैं पुरखों से बातें कर सकता हूं। मैं जो बच्‍चे पैदा नहीं हुए, उनसे भी बातें कर सकता हूं।’

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