Film Review- DUM MAARO DUM
निर्देशक रोहन सिप्पी की फिल्म दम मारो दम इस हफ्ते रिलीज हुई है। गोवा में ड्रग माफिया की सफाई के लिए नियुक्त किए किए एसीपी विष्णु कामथ यानी अभिषेक बच्चन और माफिया माइकल बारबोसा की तलाश की कहानी है, जिसके शिकार कई मासूम लोग हुए हैं। लोरी (प्रतीक) इनमें एक है, जो अमेरिका पढ़ने जाना चाहता है लेकिन इनके चंगुल में फंसता है।
इसके समांतर जोई (बिपाशा बसु) भी है जिसे एअर होस्टेस बनने की चाह है और वह भी ड्रग माफिया की शिकार हो गई है। तीसरा संगीतकार जैकी (राना डागुटी) है, जो जोई का बॉय फे्रंड है। ये सब लोग कहीं ना बारबोसा से पीडित है और बारबोसा का सूत्रधार बिस्किट (आदित्य पंचोली) है। फिल्म असली बारबोसा को तलाशने की एक यात्रा है। कहानी प्रतीक के अमेरिका जाने के लालच में ड्रग माफिया के चंगुल में फंसने से होती है और अंत 920 करोड़ के ड्रग्स को आग लगाने से। इस बीच थ्रिलर की तरह फिल्म चलती है लेकिन इंटरवल तक ही पटकथा की पोल खुलने लगती है और इंटरवल के बाद तो वह अति साधारणीकरण का शिकार हो जाती है।
ऎसी इंस्पेक्टर वाली कहानियां बनाना जो अन्याय के खिलाफ लड़ें, हमारे फिल्मकारों का प्रिय शगल रहा है। लिहाजा इसमें कोई नयापन है तो सिर्फ यह कि कैमरा गोवा को दिखा रहा है। असल में फिल्म से स्पार्क गायब है। यूं लगता है जैसे गोवा ऎसा ही है जैसा दिखता है। यह एक बनावटी कहानी है, जहां से गोवा की असली जिंदगी और असली ड्रग समस्याएं गायब सी लगती है। यानी कहानी कहीं अति साधारण है और कहीं हद से ज्यादा काल्पनिक। समस्या चरित्रों के साथ भी है कि चारों चरित्रों में से किसी एक के साथ दर्शक को सहानुभूति रखने में जोर आता है। मसलन लौरी और जोई पैसे और महत्वाकांक्षा के चलते ड्रग वालों की मदद करते हैं, ऎसा क्यो? एसीपी विष्णु कामथ एक नंबर का भ्रष्ट अफसर रहा लेकिन दुर्घटना में पत्नी और बेटी के मरने के बाद घोर ईमानदार। ऎसा क्यों? जोई का बॉय फे्रंड ही उसे ड्रग्स के धंधे में धेकलता है और वही अब मसीहा बनके आ रहा है? ऎसा क्यों? जोई पूरी फिल्म में बिस्किट की रखैल है और अचानक पवित्र हो जाती है।
यानी दर्शक किसी एक चरित्र के साथ अपनी सहानुभूति जोड़ नहीं पाता है। पटकथा की यह खामी भारी पड़ती है फिल्म पर। उसमें कुछेक दृश्यों को छोड़कर कहीं कुछ जादुई नहीं लगता। अभिषेक ने ठीक ठाक अभिनय किया है। प्रतीक ठीक है। बिपाशा सजावटी गुडिया है, विद्या बालन की सिर्फ हाजिरी सी है। राना भाव विहीन चेहरा लिए हैं। आयटम सॉन्ग दम मारो दम में दीपिका पादुकोण हैं और ठीक लगी हैं। अभिषेक ने गाना अच्छा गाया है। जयदीप साहनी ने गाने ठीक ठाक लिखे हैं। कुल मिलाकर दम मारो दम में नया और जादुई कुछ नहीं लगता। बस टाइमपास के लिए आप जा सकते हैं।
निर्देशक रोहन सिप्पी की फिल्म दम मारो दम इस हफ्ते रिलीज हुई है। गोवा में ड्रग माफिया की सफाई के लिए नियुक्त किए किए एसीपी विष्णु कामथ यानी अभिषेक बच्चन और माफिया माइकल बारबोसा की तलाश की कहानी है, जिसके शिकार कई मासूम लोग हुए हैं। लोरी (प्रतीक) इनमें एक है, जो अमेरिका पढ़ने जाना चाहता है लेकिन इनके चंगुल में फंसता है।
इसके समांतर जोई (बिपाशा बसु) भी है जिसे एअर होस्टेस बनने की चाह है और वह भी ड्रग माफिया की शिकार हो गई है। तीसरा संगीतकार जैकी (राना डागुटी) है, जो जोई का बॉय फे्रंड है। ये सब लोग कहीं ना बारबोसा से पीडित है और बारबोसा का सूत्रधार बिस्किट (आदित्य पंचोली) है। फिल्म असली बारबोसा को तलाशने की एक यात्रा है। कहानी प्रतीक के अमेरिका जाने के लालच में ड्रग माफिया के चंगुल में फंसने से होती है और अंत 920 करोड़ के ड्रग्स को आग लगाने से। इस बीच थ्रिलर की तरह फिल्म चलती है लेकिन इंटरवल तक ही पटकथा की पोल खुलने लगती है और इंटरवल के बाद तो वह अति साधारणीकरण का शिकार हो जाती है।
ऎसी इंस्पेक्टर वाली कहानियां बनाना जो अन्याय के खिलाफ लड़ें, हमारे फिल्मकारों का प्रिय शगल रहा है। लिहाजा इसमें कोई नयापन है तो सिर्फ यह कि कैमरा गोवा को दिखा रहा है। असल में फिल्म से स्पार्क गायब है। यूं लगता है जैसे गोवा ऎसा ही है जैसा दिखता है। यह एक बनावटी कहानी है, जहां से गोवा की असली जिंदगी और असली ड्रग समस्याएं गायब सी लगती है। यानी कहानी कहीं अति साधारण है और कहीं हद से ज्यादा काल्पनिक। समस्या चरित्रों के साथ भी है कि चारों चरित्रों में से किसी एक के साथ दर्शक को सहानुभूति रखने में जोर आता है। मसलन लौरी और जोई पैसे और महत्वाकांक्षा के चलते ड्रग वालों की मदद करते हैं, ऎसा क्यो? एसीपी विष्णु कामथ एक नंबर का भ्रष्ट अफसर रहा लेकिन दुर्घटना में पत्नी और बेटी के मरने के बाद घोर ईमानदार। ऎसा क्यों? जोई का बॉय फे्रंड ही उसे ड्रग्स के धंधे में धेकलता है और वही अब मसीहा बनके आ रहा है? ऎसा क्यों? जोई पूरी फिल्म में बिस्किट की रखैल है और अचानक पवित्र हो जाती है।
यानी दर्शक किसी एक चरित्र के साथ अपनी सहानुभूति जोड़ नहीं पाता है। पटकथा की यह खामी भारी पड़ती है फिल्म पर। उसमें कुछेक दृश्यों को छोड़कर कहीं कुछ जादुई नहीं लगता। अभिषेक ने ठीक ठाक अभिनय किया है। प्रतीक ठीक है। बिपाशा सजावटी गुडिया है, विद्या बालन की सिर्फ हाजिरी सी है। राना भाव विहीन चेहरा लिए हैं। आयटम सॉन्ग दम मारो दम में दीपिका पादुकोण हैं और ठीक लगी हैं। अभिषेक ने गाना अच्छा गाया है। जयदीप साहनी ने गाने ठीक ठाक लिखे हैं। कुल मिलाकर दम मारो दम में नया और जादुई कुछ नहीं लगता। बस टाइमपास के लिए आप जा सकते हैं।
5 टिप्पणियां:
अच्छी समीक्षा।
AGREED.......ONE STAR
AGREED ....ONE STAR
badhiya hai.....
bhaiya de do dhaiya star
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