फिल्म समीक्षा: ये साली जिंदगी
फिल्म ये साली जिंदगी एक बेहतरीन रोमांटिक थ्रिलर में ब्लैक कॉमेडी का मिश्रण है। सुधीर मिश्रा जैसे प्रतिभाशाली निर्देशक से आप ऐसी ही अपेक्षा रख सकते हैं। खासकर उस स्थिति में जब वे हजारों ख्वाहिशें ऐसी के फे्रम से बाहर आने के लिए तड़प रहे थे।
एक साधारण सी कहानी को बेहतरीन ट्रीटमेंट, विटी डायलॉग्स और चुस्त संपादन के जरिए किस तरह से कहा जा सकता है इसका उदाहरण है ये साली जिंदगी। कहानी इतनी सी है कि अरुण (इरफान) को प्रीति(चित्रांगदा सिंह) से प्यार हो जाता है और किसी दूसरे लड़के के साथ उसे देख लेता है। अरुण का पार्टनर मेहता (सौरभ शुक्ला) उसे कहता है कि इश्क और बुलेट में फर्क नहीं होता। दोनों सीने को चीर कर जाते हैं लेकिन अरुण प्रीति के लिए एक दलदल में फंसता है और वहां से निकलता भी है लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता। पूरी फिल्म में जिंदगी के सारे पात्र इतने धूसर हैं कि भाई ही भाई का सगा नहीं है। ना लड़की सगी है ना लड़का। मिश्रा इसी जिंदगी की कहानी कह रहे हैं जिसे स्वानंद किरकिरे के गीत आगे बढ़ाते हैं, हम कुछ सोचते हैं, ये सोचती कुछ और है, ये साली जिंदगी।
अद्भुत है जब जेल से छूट कर आया कुलदीप (अरुणोदय सिंह) अपनी नाराज पत्नी शांति (अदिति राव)को मनाने पीछे भाग रहा है। ऑटो में बच्चा साथ है उसे आंख बंद करने को कहता है और एक चुंबन शुरू होता है। अगले एक मिनट में उनके मिलने की खूबसूरत कहानी कह दी गई है। सुधीर और मनु ऋषि के संवाद आपको फंस गए रे ओबामा, ओए लकी लकी ओए से आगे नजर आएंगे। यह दिल्ली और उससे सटे हरियाणा की वह खड़ी जुबान हैं जहां गालियां एक खुशबू के झोंके की तरह आती हैं। और वह यादगार दृश्य जिसमें योग करते हुए एक की हत्या होती है और लाश के पेट से गैस निकलती है। कितने ही यादगार दृश्य मिश्रा ने रचे हैं। बहुत सारे पात्रों की भीड़ है जो इंटरवल के बाद आपको थोड़ी ज्यादा लग सकती है। बेहतरीन फोटोग्राफी, संगीत, गीत और सबसे खूबसूरत संवादों के लिए ये साली जिंदगी देखी जानी चाहिए। इसलिए भी देखी जानी चाहिए कि हमारा सिनेमा परंपरागत दीवारें तोड़कर किस तरह अपनी एक नई जुबान तय कर रहा है, जिससे बहुत लोगों को अपच भी होगी लेकिन सिनेमा इसी तरह बदलता है। इरफान बेहतरीन अदाकार हैं। चित्रांगदा, अरुणोदय, अदिति राव, सौरभ शुक्ला, यशपाल सब के सब जोरदार जमे हैं।
फिल्म ये साली जिंदगी एक बेहतरीन रोमांटिक थ्रिलर में ब्लैक कॉमेडी का मिश्रण है। सुधीर मिश्रा जैसे प्रतिभाशाली निर्देशक से आप ऐसी ही अपेक्षा रख सकते हैं। खासकर उस स्थिति में जब वे हजारों ख्वाहिशें ऐसी के फे्रम से बाहर आने के लिए तड़प रहे थे।
एक साधारण सी कहानी को बेहतरीन ट्रीटमेंट, विटी डायलॉग्स और चुस्त संपादन के जरिए किस तरह से कहा जा सकता है इसका उदाहरण है ये साली जिंदगी। कहानी इतनी सी है कि अरुण (इरफान) को प्रीति(चित्रांगदा सिंह) से प्यार हो जाता है और किसी दूसरे लड़के के साथ उसे देख लेता है। अरुण का पार्टनर मेहता (सौरभ शुक्ला) उसे कहता है कि इश्क और बुलेट में फर्क नहीं होता। दोनों सीने को चीर कर जाते हैं लेकिन अरुण प्रीति के लिए एक दलदल में फंसता है और वहां से निकलता भी है लेकिन सब कुछ इतना आसान नहीं होता। पूरी फिल्म में जिंदगी के सारे पात्र इतने धूसर हैं कि भाई ही भाई का सगा नहीं है। ना लड़की सगी है ना लड़का। मिश्रा इसी जिंदगी की कहानी कह रहे हैं जिसे स्वानंद किरकिरे के गीत आगे बढ़ाते हैं, हम कुछ सोचते हैं, ये सोचती कुछ और है, ये साली जिंदगी।
अद्भुत है जब जेल से छूट कर आया कुलदीप (अरुणोदय सिंह) अपनी नाराज पत्नी शांति (अदिति राव)को मनाने पीछे भाग रहा है। ऑटो में बच्चा साथ है उसे आंख बंद करने को कहता है और एक चुंबन शुरू होता है। अगले एक मिनट में उनके मिलने की खूबसूरत कहानी कह दी गई है। सुधीर और मनु ऋषि के संवाद आपको फंस गए रे ओबामा, ओए लकी लकी ओए से आगे नजर आएंगे। यह दिल्ली और उससे सटे हरियाणा की वह खड़ी जुबान हैं जहां गालियां एक खुशबू के झोंके की तरह आती हैं। और वह यादगार दृश्य जिसमें योग करते हुए एक की हत्या होती है और लाश के पेट से गैस निकलती है। कितने ही यादगार दृश्य मिश्रा ने रचे हैं। बहुत सारे पात्रों की भीड़ है जो इंटरवल के बाद आपको थोड़ी ज्यादा लग सकती है। बेहतरीन फोटोग्राफी, संगीत, गीत और सबसे खूबसूरत संवादों के लिए ये साली जिंदगी देखी जानी चाहिए। इसलिए भी देखी जानी चाहिए कि हमारा सिनेमा परंपरागत दीवारें तोड़कर किस तरह अपनी एक नई जुबान तय कर रहा है, जिससे बहुत लोगों को अपच भी होगी लेकिन सिनेमा इसी तरह बदलता है। इरफान बेहतरीन अदाकार हैं। चित्रांगदा, अरुणोदय, अदिति राव, सौरभ शुक्ला, यशपाल सब के सब जोरदार जमे हैं।
2 टिप्पणियां:
यह तो देखने योग्य फिल्म लग रही है।
देखने लायक फिल्म है...जरूर देखनी होगी भाई...बधाई
एक टिप्पणी भेजें