एक भाई साहब हैं। उनके सीनियर अली भाई हैं। उसकी सीनियर मुन्नी है और इन सबका सीनियर धनंजय है जो आजकल मंत्री बन गया है। यह बेसिकली इस इलाके का एक बिजनेस ट्री है। इनका बिजनेस अपहरण करके फिरौती लेना है। सबसे ऊपर वाला मंत्री इसकी बाकायदा रसीद भी देता है और एक बार फिरौती चुकाने के बाद सालभर सुरक्षा की गारंटी भी। अमरीका में मंदी के शिकार ओम शास्त्री पुरखों की हवेली बेेचने इंडिया आए हैं ताकि वे अमेरिका में अपना घर बेच सकें और वे भी इस गिरोह में सबसे निचले पायदान पर खड़े होकर अपने आयडिया से अपना घर बचाते हैं और अपनी खुद की जान भी। वे अपने गांव में ओम मामा नाम से विख्यात हैं और यह शब्द ओबामा से मेल खाता है।
निर्देशक सुभाष कपूर की फिल्म फंस गया रे ओबामा एक नए विचार के साथ बनी हास्य फिल्म है और शुरुआती फ्रेम से लेकर आखिरी फे्रम तक आनंद देती है। मर्दों से नफरत करने वाली लेडी गब्बर जब क्ले से बने पुरुष पुतले को तोड़कर महिला का पुतला बनाती रहती है, तो यह स्थापित है कि वो मर्दों से नफरत करती है और अवसर आने पर बलात्कार भी। वहीं मंत्री धनंजय को फिरौती देने में हां कहने वालों की मेहनाननवाजी और इनकार करने वालों की तेजाब के तालाब में उबलते कंकाल भी आपको अच्छे लगते हैं।
केवल हास्य नहीं है। फिल्म में तंज भी है जो पूरे सिस्टम पर हमला भी करता है और पटकथा का संतुलित प्रवाह आपको कहीं बोर होने का अवसर नहीं देता। सुभाष कपूर की तारीफ होनी चाहिए।
फिल्म रजत कपूर ने अद्भुत काम किया है। इसके अलावा नेहा लेडी गब्बर के रूप में नेहा धूपिया भी अच्छी है। अमोल गुप्ते और संजय मिश्रा भी अच्छे हैं।
2 टिप्पणियां:
दर्शनीय फिल्म है।
... dekhanaa padegaa !!!
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