फिल्म पत्रकार गजेन्द्र सिंह भाटी ने यह बातचीत जेड प्लस की रिलीज़ से ठीक पहले की थी.. आप पूरी बातचीत गजेन्द्र के ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं..!
मेरा एक स्ट्रगल था कि असलम को मारा जाए कि नहीं। मैं इतना क्रूर होता हूं मेरी कहानियों में, ईमानदारी से कहूं तो। मेरी कहानियों के कैरेक्टर मर जाते हैं। ‘भोभर' में भी मर जाता है। मेरी ‘गिलहरी' मेें भी जो लड़का है जो यौन संबंधों को समझने की कोशिश कर रहा है और भागने-बच के निकलने की कोशिश में मर जाता है। तो मैं इतना क्रूर होता हूं। हालांकि क्लाइमैक्स वही है (जेड प्लस) का जो मैंने मूल कहानी में लिखा था। जिसमें एसपी कहता है कि ये सब गंदे लोग हैं और इन्होंने तो एनकाउंटर का हुकम दिया है। तो मुझे लगा कि यार मैं अपने हर कैरेक्टर को मार नहीं सकता। मतलब मैं हमेशा उम्मीद खत्म नहीं कर सकता। मैं उसको जिंदा रखना चाहता था। क्लाइमैक्स में चीजें जरा सी सिनेमैटिक लिहाज से बदली हैं। बाकी वही कहानी है। मेरा मन तो यही था कि ये मार देंगे। जो आदमी इतनी बदनामी का कारण बन गया है जो सरकारों को इतना कटघरे में खड़ा कर रहा है। इस आदमी का रिडिंप्शन (प्रायश्चित) इतना बड़ा है कि सबको नंगा कर रहा है तो इसको जिंदा नहीं छोड़ेंगे। फिर मुझे लगा यार नहीं, ये आदमी कस्बे में रहना चाहिए। इन सबकी हवा निकाल के, सब कहें कि यार तुम तो हमारे स्टार हो। तुम अभी भी खड़े हो।
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