शनिवार, जुलाई 06, 2013

लुटेरा: आखिरी पत्ती, हवा के झोंके और इश्क का नगमा



फिल्म समीक्षा
4/5 स्टार
फिल्म 'लुटेरा में बंगाल की पृष्ठभूमि में आजादी के बाद का कालखंड है। सरकार जमींदारी उन्मूलन कानून लाने की तैयारी मे हैं। मानिकपुर के जमींदार सौमित्र रॉयचौधरी के घर में वरुण श्रीवास्तव आता है। कोई दबी हुई सभ्यता की खोज में और उनकी इकलौती बेटी पाखी से उसे प्यार हो जाता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि उनकी बेटी को उससे प्यार हो जाता है। वरुण के पास बड़ा सा खाली कैनवस है। वह उसपर मास्टरपीस बनाना चाहता है। बात दरअसल यह है कि उसे तो पत्ती भी बनानी आती नहीं। वह तो लुटेरा है। जमींदार साब की दौलत और उनकी बेटी का दिल लूट के चला जाता है। इस लूट की चश्मदीद है बाबा नागार्जुन की कविता 'अकाल और उसके बाद।
फिल्म दूसरे हिस्से में डलहौजी पहुंच जाती है, जहां वरुण फिर आता है अपना मास्टरपीस बनाने। पाखी जानती है कि वह एक लुटेरा है। एक तरह से उसके पिता का हत्यारा भी। एक आवेग में वह उससे नफरत करती है। इंसपेक्टर को फोन करती है। दूसरे ही आवेग में वह उसे माफ करती है। वह उसे सच्चा प्यार करती है। पाखी बीमार है। उसकी खिड़की से एक हराभरा पेड़ दिखता है। बर्फबारी के दिन हैं। पेड़ की पत्तियां झडऩी शुरू होती हैं। उसे लगने लगता है कि जब आखिरी पत्ती गिरेगी तो वह भी मर जाएगी। यह पूरा हिस्सा अंग्रेजी के मशहूर लेखक ओ हेनरी की कहानी द लास्ट लीफ से प्रेरित है लेकिन विक्रमादित्य ने इसे अपने ढंग से कहा है। यह सिर्फ कथा संकेत भर है। फिल्म इससे कहीं ज्यादा गहरी है। अपने कहानी कहने के ढंग में जहां इंटरवल तक तो आपको यह भी नहीं लगता कि पलक झपकाई जाए।
निर्देशक विक्रमादित्य अपने सिनेमाटोग्राफर महेन्द्र शेट्टी, साथी लेखक भवानी अय्यर और अनुराग कश्यप, संपादक दीपिका कालरा के साथ मिलकर रोमांस की एक नॉस्टेलजिक सी दुनिया रचते हैं। जिसके साथ आप बहते हुए चलते हैं। इतना सा डूबते हुए भी, कि पाखी और वरुण की फुसफुसाहटें सुनने के लिए अपनी सीट से आगे की तरफ अनायास झुकते हैं, जैसे सुनें तो, लड़का लड़की बात क्या कर रहे हैं? यह हिंदी सिनेमा के हौसले को सलाम करने का समय है। थियेटर से बाहर आने के बाद फिल्म के बिम्ब आपके जहन से जाते नहीं हैं।
रणवीर सिंह और सोनाक्षी सिन्हा ने इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है। राउडियों और दबंगों की दुनिया से इतर यहां वो बेहद प्रभावशाली और स्वाभाविक लगी हैं। रणवीर सिंह जिस लो पिच पर अपने संवादों का निर्वाह कर रहे हैं वह उन्हें अलग धरातल पर ले जाता है। अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म के साथ चलता है। धन्यवाद निर्माता अनुराग कश्यप, विकास बहल, शोभा कपूर और एकता कपूर को भी। मनोरंजक फिल्म बनाने के दावे करने वाले निर्माता निर्देशक आपसे कहते हैं अपना दिमाग घर छोड़कर आइए। ऐसे दर्शकों से आग्रह है कि वे कभी अपने दिल और दिमाग को भी अपने साथ फिल्म दिखाएं। कब तक उन्हें बाहर छोड़ते रहेंगे।

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