निर्देशक आशुतोष गोवारिकर निस्संदेह देश के सबसे प्रतिभाशाली फिल्मकारों में हैं और इस हफ्ते रिलीज उनकी फिल्म खेलें हम जी जान से के बाद वे फिलहाल सबसे आगे खड़े नजर भी आते हैं। अगर हम सचमुच सिनेमा संस्कृति के प्रति समर्पित हैं तो सरकार को इस फिल्म को टैक्स फ्री करना चाहिए।
फिल्म की कहानी मानिनी चटर्जी की किताब डू ओर डाइ पर आधारित है जो ऐतिहासिक चिटगांव क्रांति के योद्धा सूज्र्या या सूर्या सेन और उनके साथियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ छेड़े गए सबसे उल्लेखनीय आंदोलन की दास्तान है। फिल्म भावुक कर देने वाले वृत्तचित्र की तरह चलता है। अच्छी बात यह है कि लगान, स्वदेस और जोधा अकबर के आशुतोष यहां और बेहतर होकर उभरे हैं।
यहां जेपी दत्ता का राष्ट्रवादी सिनेमा नहीं है बल्कि यह उन मासूम लोगों को श्रद्धांजलि है जिनकी देश को आजाद कराने की इच्छा ने उन्हें हद से गुजरने का हौसला दिया। और इस क्रांति की शुुरुआत स्कूली किशोरों के फुटबाल खेलने की जगह ब्रिटिश छावनी बन जाने से हुई, जब क्रांतिकारी सूर्या सेन से जाकर फुटबाल खेलने वाले बच्चे मिले कि आप देश की आजादी के लिए लड़ रहे हैं तो हम आपके साथ लड़ेंगे। आप देश रख लीजिएगा और हमें हमारा मैदान दे दीजिएगा। वे किशोर डरे नहीं जबकि उन्हें पता था कि इस युद्ध में उनकी जान भी जा सकती है। लंबी अवधि की फिल्म बनाने के लिए मशहूर गोवारिकर की इस फिल्म में इंटरवल तक गति धीमी है लेकिन बाद में सिनेमाई अनुभव भी अच्छा है। कालखंड की फिल्मों में लोकेशंस और सेट की अपनी अहमियत होती है और इसके साथ न्याय हुआ है। सूर्या सेन की भूमिका में अभिषेक और कल्पना दत्ता की भूमिका में दीपिका पादुकोण ने अच्छा काम किया है। सिकंदर खेर के लिए फिल्म प्रतिभा साबित करने का बड़ा अवसर है। प्रीतिलता की भूमिका में विशाखा सिंह भी जमी है।
बेहतरीन सिनेमाटोग्राफी फिल्म की खूबी है और आशुतोष गोवारिकर जैसे जोखिम लेने वाले फिल्मकार का सम्मान यही है कि लोग यह फिल्म देखें। यदि आपको इतिहास थ्रिल करता है। आप देश के लिए थोड़ा सा भी सोचते हैं तो यह फिल्म देखी जानी चाहिए।
1 टिप्पणी:
लग तो अच्छी रही है।
एक टिप्पणी भेजें