शनिवार, सितंबर 11, 2010
निराश करती फार्मूलों की वापसी
निर्देशक अभिनव सिंह कश्यप की फिल्म दबंग सलमान खान के प्रशंसक दर्शकों के लिए हैं, जो अपने नायक को भ्रष्ट होने के बावजूद प्यार करते हैं। लुंगी पहने हुए इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे अपने जर्जर घर की सीढियों से उतर रहे हैं। वाश बेशिन में मुंह धोना चाहते हैं लेकिन नल में पानी नहीं आ रहा है। यह एक सामान्य दृश्य है लेकिन दर्शक इस पर जोर जोर से हंसते हैं, क्योंकि जिस आदमी को उस नल से पानी चाहिए, वो सलमान खान है, वह नायक है। दबंग एक ऎसे नायक की फिल्म है,जो जो डरता नहीं है। भ्रष्ट तो है ही। नाम रॉबिनहुड से ज्यादा धोखा मत खाइए। वह किसी को भला करने वाला भी नहीं है। वह तो दो मटकों के पांच सौ रूपए एक लड़की को इसलिए देता है कि वह नायिका है और हीरो को उससे प्यार है। पांच सौ का नोट दिखाता सलमान सोनाक्षी से जो कहता है और सोनाक्षी बदले में जो कहती है, वह सब आप ट्रेलर में देख ही चुके हैं।
फिल्म की कहानी में कोई जान नहीं है। यह टिपिकल फार्मूला फिल्म है, जिसमें नायक बीस पचास गुंडों से अकेला ही लड़ लेता है। अगर आप सलमान के सच्चे प्रशंसक नहीं हैं और एक्शन भी आपको पसंद नहीं तो फिल्म में आप परेशान हो जाएंगे। एक मां के दो बेटे हैं। चुलबुल के जन्म के बाद उसके पिता की मौत के बाद उसकी मां ने प्रजापति पांडे से शादी कर ली। एक बेटा और हुआ। एक मां लेकिन दो बाप होने की वजह से दोनों भाइयों में कभी बनी ही नहीं और इसका फायदा लालगंज का उभरता नेतानुमा गंुडा उठाता है। चुलबुल पांडे से बदला लेने के लिए उसके भाई को इस्तेमाल करता है। जैसा कि फार्मूला फिल्मों में होता है, भाई से भाई का मिलन होता है और दोनों मिलकर छेदी सिंह को मारते हैं। तड़पा तड़पा कर।
यह अच्छा दृश्य बन पड़ा है लेकिन सारे नंबर मुन्नी बदनाम हुई गाने और उसके फिल्मांकन को जिससे आम भारतीय दर्शक को पैसा वसूल की अनुभूति होती है। यदि आप दर्शकों का भेद करें तो यह छोटे सेंटर्स और सिंगल स्क्रीन की फिल्म है। मल्टीप्लैक्स दर्शकों को उतना मजा नहीं आता। फिल्म को सलमान खान ही बचाते हैं। निर्देशक अभिनव कश्यप के लिए अच्छी बात यह है कि उनकी फिल्म में सलमान खान हैं। सोनाक्षी सिन्हा ने अपनी भूमिका में ठीक काम किया है। विनोद खन्ना, डिंपल कापडिया भी हैं। ओमपुरी, अनुपम खेर भी। लेकिन सब ठीक ठाक हैं। बहरहाल, फिल्म को मकसद कारोबार करना है, उस मोर्चे पर शायद बाजी मार ही जए। सिनेमा के लिहाज से ऎसी परंपरा की शुरूआत चिंताजनक है कि गजनी की कामयाबी ने हमें वांटेड दी ओर वांटेड की कामयाबी ने दबंग। कुल मिलाकर दबंग सलमान खान परंपरा की फिल्म है और निराश करती है।
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2 टिप्पणियां:
तब तो छोड़ी जा सकती है।
... soch-samajh kar hee film dekhane jaanaa padegaa !!!
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