मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जयपुर में चल रहे साहित्य उत्सव के दौरान विक्रम सेठ ने बातचीत करते हुए वाइन क्या पी ली, जैसे उन्होंने किसी की हत्या कर दी है। खासकर उस चीज की जिसे संस्कृति कहते हैं। संस्कृति को लेकर इतना फिक्रमंद यह अखबार मुझे पहले कभी नजर नहीं आया। अखबार का नाम दैनिक भास्कर है और अब मेरा संदेह पक्के यकीन में तब्दील हो गया है कि उस अखबार को आप सांस्कृतिक दूत के रूप में समझते हैं तो यह आपकी भूल है। यह एक सनसनी है जो मीडियोकर लोगों को अच्छी लगती है। ठीक वैसे ही जैसे इंडिया टीवी और दूसरे बेहूदे चैनल यह दिखाते रहते हैं कि एक आदमी जिंदा सांप को निगल गया, या एक कापालिक शव को लेकर आराधना कर रहा है। दैनिक भास्कर ने विक्रम सेठ के वाइन पीने को मुद्दा बनाते हुए जयपुर में लीड छापा है। ऐसी ही एक बेहूदी सी हरकत इन््होंने पिछले साल भी की थी।
असल में यह पहले से ही तिरस्कृत और असहाय लेखक जगत पर एक मुनाफाखोर अखबार का तमाचा है। मैं साहित्य उत्सव के आयोजकों को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता। मैं उनके किसी आयोजन में प्रतिभागी भी नहीं हूं। मैं अफसोस के साथ उन लेखकों से शिकायत करता हूं जिन्होंने सनसनी के तौर पर मांगे गए एक बयान में भारतीय संस्कृति की व्याख्या कर दी। यदि विक्रम सेठ जैसे एक आदमी के मंच पर वाइन पी लेने से वह खत्म हो रही है और खंडित हो रही है तो मैं चाहता हूं कि यह तुरंत ही खंडित हो जाए। ऐसी संस्कृति के बने रहने का कोई तुक नहीं है। फिर आने दीजिए वही पुराना युग जिसमें जो ताकतवर है वह जीतेगा। इन प्रतिक्रियाओं में मैं उदय प्रकाश जी के वक्तव्य से ही सहमत हो सकता हूं। उन्होंने कहा कि लेखक सबसे अशक्त है। आप चोर उचक्कों के खिलाफ और कॉरपोरेट पार्टियों में शराब पीने वालों के खिलाफ कलम नहीं उठाते।
मेेरे पास सिर्फ तीन उदाहरण हैं। एक रवि बुले, एक संजीव मिश्र और आलोक शर्मा। रवि हिंदी के युवा कथाकारों में सबसे आगे हैं। संजीव दुर्भाग्य से हमारे बीच नहीं रहे और आलोक शर्मा कवि हैं, शायर भी। तीनों ही लेखक पत्रकार भी हैं और तीनों ने ही दैनिक भास्कर में काम किया है। मैं तीनों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, लिहाजा दावे से कह सकता हूं कि वे पॉलिटिक्स नहीं कर सकते थे इसलिए भास्कर में काम नहीं कर पाए। तीनों को नौकरी देते समय भास्कर ने उम्दा वादे किए और फिर उनको लगभग यातनापूर्ण माहौल में भास्कर छोडऩा पड़ा। क्योंकि वे सिर्फ काम करना जानते थे, चाटुकारिता नहीं। तो लेखकों और संस्कृति के प्रति अचानक यह अखबार इतना हमदर्दी कैसे दिखा रहा है।दूसरी बात मुझे पिछले दिनों ही ज्ञात हुई, भास्कर के जयपुर संस्करण में साल भर पहले स्थानीय रचनाकारों को सम्मान देने का ऐलान करते हुए साहित्य का एक पेज विमर्श नाम से शुरू किया। सालभर तक लेखक छपे भी और अपने विचार भी व्यक्त करते रहे लेकिन अफसोस की बात यह है कि एक भी लेखक को मानदेय या पारिश्रमिक की फूटी कौड़ी नहीं मिली। यानी वे सब साहित्यिक मुद्दों को बेचकर मुनाफा कमाएं और लेखक मुफ्त में बेगारी करें। मुझे शिकायत है उन लेखकों से भी जो मुफ्त में साल भर तक लिखते रहे। लेखन की यह साधना साहित्यिक पत्रिकाओं में लिखकर भी तो पूरी हो सकती है, लेकिन दुर्भाग्य से हम उसी बाजार और लोकप्रियता के तकाजों के शिकार हैं। यही इन लोगों की साजिश है कि लेखक भी आम लोगों जैसा ही व्यवहार करने लगे ताकि मीडियोकर लोग मीडिया में हावी रहें और पढ़े लिखे लोग इनसे नफरत करने लगे। इस कड़वी सच्चाई को मानने में कोई बुराई नहीं है कि हिंदी के अखबारों में साहित्य और सांस्कृतिक मुद्दों पर सोचने वाले संजीदा पत्रकारों को दोयम दर्जे का माना जाने लगा है। जी हुजूरी यहां भी सुपरहिट है। तीसरा उदाहरण, जानी मानी लेखिका लवलीन की मौत का है। लवलीन की मौत पर पत्रिका ने सम्मानजनक ढंग से खबर छापी लेकिन भास्कर में इसका उल्लेख ही नहीं था। उस दिन एक भी लेखक ने अपना विरोध जताने के लिए उनके संपादक को चि_ी नहीं लिखी। वह दिन दूर नहीं, जब आपकी हमारी खबरें इसी तरह दबा दी जाएंगे। इमरान हाशमी नाम का एक चवन्नी सितारा एक पेज सिर्फ इसलिए घेर लेता है कि वह कितनी लड़कियों का चुम्बन ले चुका है और आप यह जगह तभी घेर पाते हैं जब आप मंच पर बैठकर शराब पिएं। क्या हम लेखक सिर्फ अपनी तौहीन कराने के लिए ही अखबारों में छपेंगे।
मेरे खयाल में मुझे नाम लेने की जरूरत नहीं है लेकिन हमारे ही दो लेखक मित्रों ने रिश्वतखोरी के आरोप में ऐसी ही यातना झेली है, बार बार अखबार लिखते रहे कि आरोपी एक लेखक भी है। वैसे उस मशहूर कवि की कविताएं छापते हुए भी अखबार कतराते हैं लेकिन आज लेखक पकड़ में आया है तो इसे मार डालो। इस साजिश के खिलाफ खड़े होइए, वरना मंच पर जी भर भाषण देते रहिए। खबर को तैयार करने में आप मुनाफाखोर व्यवसायियों के टूल बन गए हैं। लेखक अपनी सामाजिक नैतिकता खुद तय करता है। विक्रम सेठ ने कोई कानून नहीं तोड़ा, और अपनी नैतिकता वह आपसे उधार नहीं ले सकता। उसकी नैतिकता पर सवाल उठाना बौद्धिक दिवालियापन है।
कोई चार साल पहले प्रेस क्लब की बार में मैं एक बार अपनी नन्हीं बेटी को साथ ले गया था, लोगों ने कहा, आपको इसको यहां नहीं लाना चाहिए था, मैंने कहा, मैं जो कर रहा हूं उसके लिए अपनी बेटी से आंख मिलाने की हिम्मत रखता हूं, इसलिए मेरे परिवार और मेरे बीच कोई पर्दा नहीं है। तो कोई दूसरा वो पर्दा तय नहीं कर सकता। विक्रम सेठ बनने के लिए और मंच पर बैठकर वाइन पीने के लिए बहुत साधना की जरूरत है। संस्कृति की चौकीदारी करते हुए आप मीडियोकर हो सकते हैं, साधक नहीं। यह लेखक को मीडियोकर बनाने की साजिश है। मैं इसका पुरजोर विरोध करता हूं, यही आंच कल हम तक पहुंचेगी, लिहाजा विरोध करिए कि मीडियोकर ढँग से सोचने वाले पत्रकार लेखक की मर्यादा तय नहीं कर सकते।
गुरुवार, जनवरी 22, 2009
मंगलवार, जनवरी 13, 2009
गोल्डन गलोब के हिंदुस्तानी सवाल
हालांकि इसमें मुंबइया फिल्मवालों का कोई योगदान नहीं है कि उन्हें बधाई दी जाए लेकिन वजह बनती है कि रहमान हमारे अपने म्यूजिशियन हैं। पहले भारतीय है जिन्हें लगभग ऑस्कर की ही तरह प्रतिष्ठित गोल्डन गलोब अवार्ड मिला है। इसमें रहमान की अद्भुत प्रतिभा का योगदान है। मुझे लगता है इस खूबी के अलावा फिल्म की खूबी यह है कि इसमें गुलजार के गीत हैं। हमारे इरफान और अनिल कपूर समेत कई भारतीय कलाकारों ने अभिनय किया है। कहानी भी मुम्बई की है, जिसको लेकर बॉलीवुड वाले दावा कर रहे हैं कि दुनिया में मुंबई छा गया है। रहमान की उपलब्धि को बड़ा मानते हुए भी मुझे बेहद अफसोस है कि भारत की इस कहानी की पटकथा-लेखक सीमॉन ब्यूफॉय भारतीय नहीं है, जिसे सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का अवार्ड मिला है। निर्देशक डैनी बॉयल भी भारतीय नहीं है। और सर्वश्रेष्ठ फिल्म बनाने वाले इसके प्रोड्यूसर भी भारतीय नहीं है।
सिनेमा के जरिए एक बेहतरीन मानवीय कहानी कहने के बजाय हमारा गर्व यह है कि हमारा सुपरस्टार अपनी फिल्म के प्रचार के लिए लिए एक खास किस्म की कटिंग करते हुए नाई बनता है। उसकी हिंसा और मारधाड़ वाली एक हॉलीवुड फिल्म की नकल के लिए उसे महान करार दिया जाता है और गजनी नाम की फिल्म भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन जाती है।
क्यों स्लमडॉग मिलियनेयर की परिकल्पना से लेकर उसका विपणन करने वाली टीम भारतीय नहीं है। क्योंकि हमारे फिल्मकारों को दूसरों की बनाए हुए सिनेमा को नकल करने से फुर्सत ही नहीं है। यदि वे ऐसा करते हैं तो किस मुंह से यह उम्मीद करते हैं कि उनकी फिल्में लोग पायरेटेड डीवीडी पर ना देखें। आखिर वे भी तो किसी की असली मेहनत को अपनी कमाई का जरिया बनाते हैं। लिहाजा मैं बहुत खुश हूं कि भारतीय कहानी को, भारतीय संगीत और भारतीय कलाकारों को इस फिल्म से नाम और काम मिला लेकिन असली गर्व का दिन तो तब आएगा जब बॉलीवुड के रहमान किसी बॉलीवुड की फिल्म के लिए ही जाने जाएंगे। और जो सिनेमा दुनिया के सिनेमा में इज्जत पाए वो रब ने बना दी जोड़ी और गजनी से कहीं आगे का होता है। सरहदें तोड़ता हुआ, आपकी ही कहानी पर सरहद पार से आपको आइने में देखने का अवसर देता हुआ कि देखों मुम्बई के नकलची फिल्मकारो, मुंबई की कहानी पर फिल्म ऐसे बनती है।
लेकिन शायर की भी सुनिए-फरिश्ते से बेहतर है इंसां होनापर इसमें लगती है मेहनत ज्यादा
सिनेमा के जरिए एक बेहतरीन मानवीय कहानी कहने के बजाय हमारा गर्व यह है कि हमारा सुपरस्टार अपनी फिल्म के प्रचार के लिए लिए एक खास किस्म की कटिंग करते हुए नाई बनता है। उसकी हिंसा और मारधाड़ वाली एक हॉलीवुड फिल्म की नकल के लिए उसे महान करार दिया जाता है और गजनी नाम की फिल्म भारतीय सिनेमा की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बन जाती है।
क्यों स्लमडॉग मिलियनेयर की परिकल्पना से लेकर उसका विपणन करने वाली टीम भारतीय नहीं है। क्योंकि हमारे फिल्मकारों को दूसरों की बनाए हुए सिनेमा को नकल करने से फुर्सत ही नहीं है। यदि वे ऐसा करते हैं तो किस मुंह से यह उम्मीद करते हैं कि उनकी फिल्में लोग पायरेटेड डीवीडी पर ना देखें। आखिर वे भी तो किसी की असली मेहनत को अपनी कमाई का जरिया बनाते हैं। लिहाजा मैं बहुत खुश हूं कि भारतीय कहानी को, भारतीय संगीत और भारतीय कलाकारों को इस फिल्म से नाम और काम मिला लेकिन असली गर्व का दिन तो तब आएगा जब बॉलीवुड के रहमान किसी बॉलीवुड की फिल्म के लिए ही जाने जाएंगे। और जो सिनेमा दुनिया के सिनेमा में इज्जत पाए वो रब ने बना दी जोड़ी और गजनी से कहीं आगे का होता है। सरहदें तोड़ता हुआ, आपकी ही कहानी पर सरहद पार से आपको आइने में देखने का अवसर देता हुआ कि देखों मुम्बई के नकलची फिल्मकारो, मुंबई की कहानी पर फिल्म ऐसे बनती है।
लेकिन शायर की भी सुनिए-फरिश्ते से बेहतर है इंसां होनापर इसमें लगती है मेहनत ज्यादा
शुक्रवार, जनवरी 02, 2009
अबके बरस
कैसे मिलेंगे अबके बरस दिन कमाल के,पिछला बरस तो गया कलेजा निकाल केओ मेरे कारवां, मुडक़र ना देख मुझकोमैं आ रहा हूं पांव के कांटे निकाल केमैं भारत का नागरिक हूं और उन तमाम पैँतीस या चालीस करोड़ युवाओं की तरह मैं भी खुशकिस्मत हूं। मेरे पिता गुलाम भारत में पैदा हुए और मैं आजाद भारत में। एक बरस और बीत रहा है। यूं लगता है, जैसे उम्मीदों से भरा मेरा दिल हौले हौले रीत रहा है। पूरे बरस में जख्म देखे हैं। कभी वे जयपुर आए, कभी वे अहमदाबाद गए, मालेगांव गए, मुम्बई के ताज और ओबेरॉय में घुस गए। मैं तख्ती लेकर गेटवे ऑव इंडिया और जयपुर के शहीद स्मारक के सामने तक खड़ा हो गया। तख्ती पर लिखा था-हार नहीं मानेंगे, आतंकवाद का मुंह तोड़ जवाब देंगे। मुझे पूरी आशंका है, जिस तरह हर बात पर हमें तख्ती उठाने की आदत पड़ गई है, एक दिन प्लास्टिक से बनी ये तख्तियां पर्यावरण प्रदूषण का काम करेंगी। इनसे सीवर लाइनें रुक जाएंगी। इसके बावजूद, साल बीत रहा है और मुझमें अकूत उम्मीदें भरी हैं। ये सारी उम्मीदे मुझे विरासत से मिली हैं। सिंधु घाटी सभ्यता से आर्यों तक, गौरी, गजनवी, लोदी, खलजी, बाबर, अकबर, औरंगजेब, डलहौजी, माउंट बेटन, नेहरू, इंदिरा, वाजपेयी, मनमोहन तक इस आर्यावर्त में अपनी पीठ पर उम्मीदों की पोटली लादे सांता क्लॉज बना घूम रहा हूं। मैं लुटा पिटा, युद्ध लड़े, आश्वासन लिए, मार खाई, भूखा रहा, मूक आंखों से भ्रष्टाचार का खुला खेल देखता रहा। अमीर को और अमीर होते, गरीब को और गरीब होते देखता रहा। साल दर साल मैंने वो सब कहानियां भी सुनी हैं जिसमें कई गरीब लोग अमीर हो गए। मसलन किस तरह कलकत्ता में नौकरी करने वाला एक युवक मुम्बई में आकर सुपरस्टार हो गया। किस तरह दसवीं पास एक आदमी इतना अमीर हो गया था कि उसकी संपति को लेकर उसके दोनों बेटों ने सार्वजनिक रूप से झगड़ा गया और तू तू मैं मैं आज भी होती है।़ किस तरह एक दलित की बेटी गरीबी से निकलकर इतने तोहफों के नीचे दब गई कि उसकी संपत्ति करोड़ों में हो गई। वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बन गई। लोकतंत्र की कुछ ऐसी ही उम्मीदों की पोटली का बोझ नए बरस में मैं अपने बच्चों को देने की कोशिश करूंगा। जबकि मंदी से जूझते हुए मुझ आम आदमी के बैंक खातों में स्कूल से मिले एक सर्कुलर से भूकम्प आया है कि फीस बढऩे वाली है।
नए साल में मुझमें दिख रहे इस आत्म विश्वास की कई वजह हैं। आजादी के साठ साल बीतने के बाद यह अहसास काफी सुखद है कि हत्या, रिश्वतखोरी जैसे अपराधों को हमने आम मान लिया है। उन्हीं में लिप्त आदमी को अपना रहनुमा बना सकते हैं। वे लोग देश को चला सकते हैं। अब मुझे दर्द तब तक नहीं होता है जब तक कोई मेरे ही घर में घुसकर मेरे घरवालों को ना मार दें। अफसोस तो इस बात का है मैं अपने निजी जीवन में घोर मौका परस्त, स्वार्थी, ईष्र्यालु हूं लेकिन मेरे पास देश के लिए जरूर समाधान है। मैं बता सकता हंूं कि भारत को आतंकवादी हमले का समाधान कैसे करना चाहिए? यह काम भी मनमोहन के झोली में नहीं डालना चाहता।
दरअसल यह नया बरस ऐसे समय में आ रहा है जब एक महीने पहले ही मुम्बई आतंक से दहली थी। दहला तो देश का आम आदमी भी था लेकिन दिल्ली में हो रहे चुनाव में विपक्ष की पार्टी ने ऐलान किया आतंकवाद के हमलों के लिए आतंकवादियों से ज्यादा जिम्मेदार केन्द्र की सरकार है। लिहाजा भारतीय जनता पार्टी ने ऐलान किया हम आतंकी हमलों से आपको और देश को बचाएंगे। दिल्ली में चुनाव के ही दिन मुम्बई में एनएसजी के कमाण्डो आतंकियों से लड़ रहे थे और भाजपा कांग्रेस आपस में चुनाव लड़ रही थी। मेरी उम्मीद इसलिए भी कायम है कि जनता ने भाजपा की बात नहीं मानकर अपने दिल की बात मानी। फिर इसी घटना को लेकर गेटवे ऑव इंडिया पर जोर शोर से आने वाली आम जनता-?- ने कहा अब आतंकवाद को खत्म होना पड़ेगा लेकिन भारत को असमय ही अपने देशभक्तों को इसलिए खोना पड़ा कि आदित्य चौपड़ा नाम के मशहूर फिल्मकार ने रब ने बना दी जोड़ी नाम से एक फिल्म बनाई और जनता हमलों ेकी परवाह किए बिना सिनेमाघरों में दौड़ी। रब ने बना दी जोड़ी का बारहवां हुआ कि लोग आमिर खान नाम के एक राष्ट्रीय नायक पर अपना पूरा प्रेम उंडेलने दौड़ पड़े। मल्टीप्लेक्स के कोने में फटेहाल खड़े आदमी से मैंने पूछा, आप कौन हैं, यहां उदास क्यों खड़े हैं? फटेहाल शरीफ आदमी बोला, मेरा नाम भारत है। पाकिस्तान से आए कुछ लोगों ने मेरी पिटाई कर दी है। ये लोग दस दिन पहले तक तो मेरे घावों पर मरहम लगा रहे थे लेकिन अचानक शाहरूख खान और आमिर खान नाम के लोग बीच में आ गए। सारे लोग मुझे अस्पताल में छोड़ आए और खुद फिल्म देखने चले गए।
नए साल में मुझे और भी उम्मीदें हैं। दुनिया का ठेकेदार कहलाने वाला एक राष्ट्र एक नई करवट ले रहा है। पहली बार वहां अश्वेत राष्ट्रपति नए साल में काम संभालेगा और पहली बार वह देश रुपए पैसे की भीषण तंगी में फंस गया है। यहां तक इराक के पत्रकार तक उनके राष्ट्रपति को जूते से मारने की हिम्मत करने लगे हैं। इन सारे घटनाक्रम से प्रभावित होकर भारत में बेईमानी की गैस से पेट फुलाए एक पूरा संप्रदाय बौद्धिक डकारें लेकर कह रहा है कि भारत अब सुपर पावर बन ही गया है। क्योंकि हमने खेती की जमीन पर सेज बना दी है। इसलिए लोगों को अनाज पैदा नहीं करना पड़ेगा। वे अब सीधे कार ही चलाएंगे, क्योंकि मंदी को दूर करने के लिए भारत सरकार ने कारों पर लगने वाला टैक्स कम कर दिया है। रिजर्व बैंक भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि जो लोग कर्ज नहीं लेना चाहते उन्हें भी जैसे तैसे करके कर्ज में फंसाया जाए। इससे उन लोगों को मदद मिल सके जिन्होंने औन पौने दामों पर किसानों से तो जमीनें खरीद ली लेकिन उन पर दोयम दर्जे के लोहे के सरिए और कम सीमेंट लगाकर बनाए गए फ्लैट्स को मुंहमांगे पैसों पर बेच सकें। वो पैसा फिलहाल तो आम आदमी को बहला फुसलाकर बैंक दे दे और जरूरत के मुताबिक ब्याज सहित वापस ले ले। बैंक को ज्यादा जरूरत पड़ जाए तो उसके मकान की कुर्की करवाकर अपना पैसा ले ले। क्योंकि यदि कोई आदमी गर्व से साथ यह कह सकता है कि मैं भारतीय हूं तो उसे अपने ही देश में लुटने में शर्म कैसी? अब अंग्रेज तो लूट नहीं रहे कि शर्म आए। अब तो डेमोक्रेसी है। जनता का राज। जनता में जिसको लूटना आता है वह लूटे और जिसे लुटना आता है, वह लुटे। जिसे दोनों ही नहीं आता वो इस देश में कीड़ा मकौड़ा है। इंजीनियर तिवारी है जिसे बहनजी के एक विधायक ने निपटा दिया है। मुझे पक्का यकीन है कि उसेे लूटना और लुटना नहीं आता था।
इससे आदर्श क्या शासन व्यवस्था हो सकती है कि जिनकी तरफ हमें बंदूक की नली करनी चाहिए, उनकी रक्षा में लगे कमाण्डोज ने जनता की तरफ वो नली कर रखी है। मुझे सरकार के कदमों से, रिजर्व बैंक के कदमों से राहत है कि वे पूरी कोशिश करके शेयर बाजार को गिरने से बचाने में लगे हुए हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि नए साल की पहली तिमाही में वे बाजार को इतना उठाने में कामयाब हो जाएंगे कि फिर से गिरा सकें। मुझे इसलिए बहुत अच्छा लग रहा है दुनियाभर में तेल की कीमतें नीचे गिर रही हैं और सरकार कह रही है कि चुनाव आने तक पर हम भी तेल के दाम कम कर देंगे। चुनाव से इतना पहले दाम कम करने से जनता इस राहत को भूल जाएगी। शायद उन्हें वोट ना दें। इसलिए अभी तेल कंपनियों को फायदा हो रहा है फिर सरकार को होगा। इतनी पारदर्शी जनकल्याणकारी लोकतांत्रिक सरकार जिस देश में काम कर रही है उसे सुपर पावर बनने से कौन रोक सकता है। सरकारी रोडवेज बसों में चलने वाले आम आदमी को सरकार पूरा रईसी सुख देना चाहती है इसलिए ऐलान किया है कि डीजल के दाम घटने के बावजूद किराया नहीं घटाया जाएगा। जबकि पिछले डेढ़ महीने से सरकार पूरा दबाव बनाए है कि हवाई जहाजों के किराए कम कराए जाएं।
सुपर पावर बनने का एक सबूत यह भी है हमारे यहां सबसे ज्यादा डायबिटीज वाले लोग हैं। नए साल में कोशिश करेंगे कि एड्स, हार्ट, अंधता, हैजा, पीलिया, मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों में भी अव्वल आएं। कैंसर के मरीज हम अमेरिका से ज्यादा करने की कोशिश करेंगे ताकि सुपर पावर बनने में जो बची खुची दिक्कत है वो भी दूर हो सके। दिल्ली इस साल कोहरे से ज्यादा प्रदूषण के धुएं की धुंध रही है, हमारी कोशिशों का और क्या सबूत चाहिए। हमारे पास हेल्थ को लेकर बाबा रामदेव से लेकर श्री श्री और मोरारी बापू और आसाराम जी जैसे लोग हैं जो बोनस हैं। अमेरिका के पास तो ऐसा एक भी बाबा नहीं हैं। जब जरूरत होती है वे हमारे यहीं से बुलाते हैं। हमारे बाबा तो पानी के जहाज में भी योग सिखा सकते हैं। यह बात अलग है कि हम पानी से आने वाले पाकिस्तानी आतंकवादियों को नहीं देख सकते। हमारे डॉक्टर भी इतने प्रोफेशनल हो गए हैं कि जहां लोग मुफ्त में आंख का आपरेशन कराना चाहें उसकी आंख को निपटा दिया जाए। आखिर घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?
एक आखिरी दिक्कत पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की है। नए साल में इस दिक्कत को दूर करेंगे। कोशिश करेंगे कि लड़ाई ना हो। हो जाए तो कुछ ऐसा टांका बिठाया जाए कि अगले चुनाव में उसका फायदा सरकार को मिले। हालांकि हमने बंदूकें तान दी हैं। पाकिस्तान को भी कह रखा है कि आप भी तान लो ताकि कुछ बराबरी का मामला लगे। अमेरिका दुबककर देख रहा है और कारखाने वालों को कह दिया है कि हथियार बनाकर तैयार रखो। दोनों ही अपने परिचित हैं। अब लड़ेंगे और हथियारों की मदद मांगेंगे तो मना कैसे कर पाएंगे। आखिर अमेरिका तो लोकतंत्र रक्षक देश है। दोनों ही लोकतंत्रों की रक्षा करने की कोशिश करेगा। जैसी उसने इराक और अफगानिस्तान में की।
तो नए साल से मेरी कुल मिलाकर ये उम्मीदे हैं--शेयर बाजार ऊपर उठेगा-या तो पाकिस्तान पर हमला होगा या नहीं होगा-हवाई जहाज के किराए सस्ते होंगे-रोडवेज का किराया यथावत रहेगा।-चुनाव ना होते तो रेल किराया बढ़ता, शायद अब ना बढ़े-शाहरुख, आमिर, अक्षय कुमार की रद्दी फिल्में भी लोग देखेंगे, दूसरे लोगों की अच्छी फिल्मों के भी पिटने के खतरे हैं-खुदा ना करे पर यदि अमिताभ फिर बीमार हुए तो मीडिया दो दिन तक नानावटी अस्पताल से सीधा कवरेज करेगा। खेद है कि अबकी बार आतंकी हमलों का सीधा कवरेज आप नहीं देख पाएंगे। सरकार ने कानून बनाया है कि आम लोगों के सामने पोल पट्टी ना खोली जाए-भारत के धनकुबेरों की संख्या बढ़ेगी। मलेरिया, डेंगू और भूख से मरने वालों की संख्या बढऩे की पूरी उम्मीद है।
बात खत्म करते हुए खलील धनतेजवी से जयुपर में सुना शेर याद आया है-अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूंअपने खेतों से बिछडऩे की सजा पाता हूं । निस्संदेह मुझे शेर अच्छे लगते है ंलेकिन यह भी लगता है कि कवि और लेखक ही इस देश को पीछे धकेल रहे हैं। इकॉनॉमिस्ट जैसे तैसे कर शेयर ऊपर उठाकर देश को आगे बढ़ाते हैं और जनाव खलील जैसे कई शायर शेर सुनाकर विकास के रथ का पहिए पंक्चर कर देते हैं। लेखकों और कवियों से नए साल में मेरी अपील है कि वे बजाय शेर सुनाने के शेयर खरीदें ताकि देश जल्दी से जल्दी सुपर पावर बन सके। आमीन।
नए साल में मुझमें दिख रहे इस आत्म विश्वास की कई वजह हैं। आजादी के साठ साल बीतने के बाद यह अहसास काफी सुखद है कि हत्या, रिश्वतखोरी जैसे अपराधों को हमने आम मान लिया है। उन्हीं में लिप्त आदमी को अपना रहनुमा बना सकते हैं। वे लोग देश को चला सकते हैं। अब मुझे दर्द तब तक नहीं होता है जब तक कोई मेरे ही घर में घुसकर मेरे घरवालों को ना मार दें। अफसोस तो इस बात का है मैं अपने निजी जीवन में घोर मौका परस्त, स्वार्थी, ईष्र्यालु हूं लेकिन मेरे पास देश के लिए जरूर समाधान है। मैं बता सकता हंूं कि भारत को आतंकवादी हमले का समाधान कैसे करना चाहिए? यह काम भी मनमोहन के झोली में नहीं डालना चाहता।
दरअसल यह नया बरस ऐसे समय में आ रहा है जब एक महीने पहले ही मुम्बई आतंक से दहली थी। दहला तो देश का आम आदमी भी था लेकिन दिल्ली में हो रहे चुनाव में विपक्ष की पार्टी ने ऐलान किया आतंकवाद के हमलों के लिए आतंकवादियों से ज्यादा जिम्मेदार केन्द्र की सरकार है। लिहाजा भारतीय जनता पार्टी ने ऐलान किया हम आतंकी हमलों से आपको और देश को बचाएंगे। दिल्ली में चुनाव के ही दिन मुम्बई में एनएसजी के कमाण्डो आतंकियों से लड़ रहे थे और भाजपा कांग्रेस आपस में चुनाव लड़ रही थी। मेरी उम्मीद इसलिए भी कायम है कि जनता ने भाजपा की बात नहीं मानकर अपने दिल की बात मानी। फिर इसी घटना को लेकर गेटवे ऑव इंडिया पर जोर शोर से आने वाली आम जनता-?- ने कहा अब आतंकवाद को खत्म होना पड़ेगा लेकिन भारत को असमय ही अपने देशभक्तों को इसलिए खोना पड़ा कि आदित्य चौपड़ा नाम के मशहूर फिल्मकार ने रब ने बना दी जोड़ी नाम से एक फिल्म बनाई और जनता हमलों ेकी परवाह किए बिना सिनेमाघरों में दौड़ी। रब ने बना दी जोड़ी का बारहवां हुआ कि लोग आमिर खान नाम के एक राष्ट्रीय नायक पर अपना पूरा प्रेम उंडेलने दौड़ पड़े। मल्टीप्लेक्स के कोने में फटेहाल खड़े आदमी से मैंने पूछा, आप कौन हैं, यहां उदास क्यों खड़े हैं? फटेहाल शरीफ आदमी बोला, मेरा नाम भारत है। पाकिस्तान से आए कुछ लोगों ने मेरी पिटाई कर दी है। ये लोग दस दिन पहले तक तो मेरे घावों पर मरहम लगा रहे थे लेकिन अचानक शाहरूख खान और आमिर खान नाम के लोग बीच में आ गए। सारे लोग मुझे अस्पताल में छोड़ आए और खुद फिल्म देखने चले गए।
नए साल में मुझे और भी उम्मीदें हैं। दुनिया का ठेकेदार कहलाने वाला एक राष्ट्र एक नई करवट ले रहा है। पहली बार वहां अश्वेत राष्ट्रपति नए साल में काम संभालेगा और पहली बार वह देश रुपए पैसे की भीषण तंगी में फंस गया है। यहां तक इराक के पत्रकार तक उनके राष्ट्रपति को जूते से मारने की हिम्मत करने लगे हैं। इन सारे घटनाक्रम से प्रभावित होकर भारत में बेईमानी की गैस से पेट फुलाए एक पूरा संप्रदाय बौद्धिक डकारें लेकर कह रहा है कि भारत अब सुपर पावर बन ही गया है। क्योंकि हमने खेती की जमीन पर सेज बना दी है। इसलिए लोगों को अनाज पैदा नहीं करना पड़ेगा। वे अब सीधे कार ही चलाएंगे, क्योंकि मंदी को दूर करने के लिए भारत सरकार ने कारों पर लगने वाला टैक्स कम कर दिया है। रिजर्व बैंक भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है कि जो लोग कर्ज नहीं लेना चाहते उन्हें भी जैसे तैसे करके कर्ज में फंसाया जाए। इससे उन लोगों को मदद मिल सके जिन्होंने औन पौने दामों पर किसानों से तो जमीनें खरीद ली लेकिन उन पर दोयम दर्जे के लोहे के सरिए और कम सीमेंट लगाकर बनाए गए फ्लैट्स को मुंहमांगे पैसों पर बेच सकें। वो पैसा फिलहाल तो आम आदमी को बहला फुसलाकर बैंक दे दे और जरूरत के मुताबिक ब्याज सहित वापस ले ले। बैंक को ज्यादा जरूरत पड़ जाए तो उसके मकान की कुर्की करवाकर अपना पैसा ले ले। क्योंकि यदि कोई आदमी गर्व से साथ यह कह सकता है कि मैं भारतीय हूं तो उसे अपने ही देश में लुटने में शर्म कैसी? अब अंग्रेज तो लूट नहीं रहे कि शर्म आए। अब तो डेमोक्रेसी है। जनता का राज। जनता में जिसको लूटना आता है वह लूटे और जिसे लुटना आता है, वह लुटे। जिसे दोनों ही नहीं आता वो इस देश में कीड़ा मकौड़ा है। इंजीनियर तिवारी है जिसे बहनजी के एक विधायक ने निपटा दिया है। मुझे पक्का यकीन है कि उसेे लूटना और लुटना नहीं आता था।
इससे आदर्श क्या शासन व्यवस्था हो सकती है कि जिनकी तरफ हमें बंदूक की नली करनी चाहिए, उनकी रक्षा में लगे कमाण्डोज ने जनता की तरफ वो नली कर रखी है। मुझे सरकार के कदमों से, रिजर्व बैंक के कदमों से राहत है कि वे पूरी कोशिश करके शेयर बाजार को गिरने से बचाने में लगे हुए हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि नए साल की पहली तिमाही में वे बाजार को इतना उठाने में कामयाब हो जाएंगे कि फिर से गिरा सकें। मुझे इसलिए बहुत अच्छा लग रहा है दुनियाभर में तेल की कीमतें नीचे गिर रही हैं और सरकार कह रही है कि चुनाव आने तक पर हम भी तेल के दाम कम कर देंगे। चुनाव से इतना पहले दाम कम करने से जनता इस राहत को भूल जाएगी। शायद उन्हें वोट ना दें। इसलिए अभी तेल कंपनियों को फायदा हो रहा है फिर सरकार को होगा। इतनी पारदर्शी जनकल्याणकारी लोकतांत्रिक सरकार जिस देश में काम कर रही है उसे सुपर पावर बनने से कौन रोक सकता है। सरकारी रोडवेज बसों में चलने वाले आम आदमी को सरकार पूरा रईसी सुख देना चाहती है इसलिए ऐलान किया है कि डीजल के दाम घटने के बावजूद किराया नहीं घटाया जाएगा। जबकि पिछले डेढ़ महीने से सरकार पूरा दबाव बनाए है कि हवाई जहाजों के किराए कम कराए जाएं।
सुपर पावर बनने का एक सबूत यह भी है हमारे यहां सबसे ज्यादा डायबिटीज वाले लोग हैं। नए साल में कोशिश करेंगे कि एड्स, हार्ट, अंधता, हैजा, पीलिया, मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों में भी अव्वल आएं। कैंसर के मरीज हम अमेरिका से ज्यादा करने की कोशिश करेंगे ताकि सुपर पावर बनने में जो बची खुची दिक्कत है वो भी दूर हो सके। दिल्ली इस साल कोहरे से ज्यादा प्रदूषण के धुएं की धुंध रही है, हमारी कोशिशों का और क्या सबूत चाहिए। हमारे पास हेल्थ को लेकर बाबा रामदेव से लेकर श्री श्री और मोरारी बापू और आसाराम जी जैसे लोग हैं जो बोनस हैं। अमेरिका के पास तो ऐसा एक भी बाबा नहीं हैं। जब जरूरत होती है वे हमारे यहीं से बुलाते हैं। हमारे बाबा तो पानी के जहाज में भी योग सिखा सकते हैं। यह बात अलग है कि हम पानी से आने वाले पाकिस्तानी आतंकवादियों को नहीं देख सकते। हमारे डॉक्टर भी इतने प्रोफेशनल हो गए हैं कि जहां लोग मुफ्त में आंख का आपरेशन कराना चाहें उसकी आंख को निपटा दिया जाए। आखिर घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?
एक आखिरी दिक्कत पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की है। नए साल में इस दिक्कत को दूर करेंगे। कोशिश करेंगे कि लड़ाई ना हो। हो जाए तो कुछ ऐसा टांका बिठाया जाए कि अगले चुनाव में उसका फायदा सरकार को मिले। हालांकि हमने बंदूकें तान दी हैं। पाकिस्तान को भी कह रखा है कि आप भी तान लो ताकि कुछ बराबरी का मामला लगे। अमेरिका दुबककर देख रहा है और कारखाने वालों को कह दिया है कि हथियार बनाकर तैयार रखो। दोनों ही अपने परिचित हैं। अब लड़ेंगे और हथियारों की मदद मांगेंगे तो मना कैसे कर पाएंगे। आखिर अमेरिका तो लोकतंत्र रक्षक देश है। दोनों ही लोकतंत्रों की रक्षा करने की कोशिश करेगा। जैसी उसने इराक और अफगानिस्तान में की।
तो नए साल से मेरी कुल मिलाकर ये उम्मीदे हैं--शेयर बाजार ऊपर उठेगा-या तो पाकिस्तान पर हमला होगा या नहीं होगा-हवाई जहाज के किराए सस्ते होंगे-रोडवेज का किराया यथावत रहेगा।-चुनाव ना होते तो रेल किराया बढ़ता, शायद अब ना बढ़े-शाहरुख, आमिर, अक्षय कुमार की रद्दी फिल्में भी लोग देखेंगे, दूसरे लोगों की अच्छी फिल्मों के भी पिटने के खतरे हैं-खुदा ना करे पर यदि अमिताभ फिर बीमार हुए तो मीडिया दो दिन तक नानावटी अस्पताल से सीधा कवरेज करेगा। खेद है कि अबकी बार आतंकी हमलों का सीधा कवरेज आप नहीं देख पाएंगे। सरकार ने कानून बनाया है कि आम लोगों के सामने पोल पट्टी ना खोली जाए-भारत के धनकुबेरों की संख्या बढ़ेगी। मलेरिया, डेंगू और भूख से मरने वालों की संख्या बढऩे की पूरी उम्मीद है।
बात खत्म करते हुए खलील धनतेजवी से जयुपर में सुना शेर याद आया है-अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूंअपने खेतों से बिछडऩे की सजा पाता हूं । निस्संदेह मुझे शेर अच्छे लगते है ंलेकिन यह भी लगता है कि कवि और लेखक ही इस देश को पीछे धकेल रहे हैं। इकॉनॉमिस्ट जैसे तैसे कर शेयर ऊपर उठाकर देश को आगे बढ़ाते हैं और जनाव खलील जैसे कई शायर शेर सुनाकर विकास के रथ का पहिए पंक्चर कर देते हैं। लेखकों और कवियों से नए साल में मेरी अपील है कि वे बजाय शेर सुनाने के शेयर खरीदें ताकि देश जल्दी से जल्दी सुपर पावर बन सके। आमीन।
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