शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

इश्किया: खुरदरे रोमांस का सिनेमा


विशाल भारद्वाज का सिनेमा करण जौहर के रेशमी सिनेमा से अलग एकदम खुरदरा है। उसी खुरदुरेपन में रोमांस है, ईष्र्या है, लालच है। निर्देशक अभिषेक चौबे की यह पहली फिल्म है और उनके हिस्से की तारीफ बनती है। इश्किया दो ऐसे बदमाशों बब्बन और खालूजान की कहानी है, जो दिल के अच्छे हैं और एक दिन लालच में आकर अपने बॉस मुश्ताक के पैसे चुराकर भाग जाते हैं। शरण अपने पुराने दोस्त के घर पर लेते हैं, जहां पता चलता है कि दोस्त मर चुका है। उसकी बीवी कृष्णाा अकेली रहती है। लेकिन उनके बॉस मुश्ताक को उनकी खबर लग जाती है और अपने भोलेपन में पकड़े जाते हैं। पांच लाख खर्च हो गए हैं। बचे खुच बीस लाख भी चोरी हो गए हैं। अब उनके सामने चुनौती है कि पच्चीस लाख का इंतजाम करें। कृष्णा उन्हें गांव छोड़कर भागने नहीं देती क्योंकि अब वह भी मुश्ताक के गनपॉइन्ट पर है। इस उलझन में बब्बन और खालू दोनों को ही कृष्णा से प्यार हो जाता है। जिस्मानी बाजी बब्बन मार जाता है और खालू जरा इमोशनल ही रहता है। उसे बब्बन पर गुस्सा भी है कि वह जहां भी जाता है, ऐसे काम पहले निपटाता है। इसी दौरान वे पैसा कमाने का प्लान बनाते हैं और कहानी एक रोमांचक अंत की और बढ़ती है।
सिनेमा में यह देहात की मजबूत वापसी है। फिल्म का देशकाल मौजूदा यूपी का नेपाल का सीमावर्ती इलाका है। फिल्म उस गांव को पूरी शिद्दत के साथ दिखाती है। सीमावर्ती गांवों में हो रहे हथियारों के कारोबार और सत्ता की लिप्सा भी दिखाती है लेकिन बिना किसी उपदेश के यह एक थ्रिलर कॉमेडी फिल्म है जिसके चुटीले और बेहतरीन संवाद हंसाते हैं, इसी लड़ाई झगड़े के बीच रोमांस की एक लहर चलती है, जिसमें तीनों पात्र डूबे हुए हैं। फिल्म विशाल भारद्वाज कमीने की ही तरह छाए हैं। वे प्रोड्यूसर, संगीतकार, पटकथा लेखक और संवाद लेखक के रूप में जुड़े हुए हैं लेकिन अभिषेक चौबे के निर्देशन की तारीफ लाजिमी है। अभिनय में नसीरूद्दीन शाह, अरशद वारसी छाए हैं। विद्या एक बोल्ड लेडी के रूप में बेहतरीन अभिनय भी किया है और बेइंतहा खूबसूरत भी लगी है। फिल्म गुरू में माधवन के साथ चुंबन दृश्य के बाद यहां अरशद वारसी के साथ उससे भी बोल्ड दृश्य है। विद्या के पति की भृमिका में आदिल हुसैन और नंदू के रूप में मास्टर आलोक भी याद रहते हैं। गुलजार साहब दिल तो बच्चा है जी के साथ छाए हुए हैं। विशाल का बेहतरीन संगीत है।

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